रोज 18 से 20 हजार टन कोयला उपयोग में आता है। कोयले की कमी के कारण कुछ यूनिट्स में उत्पादन बंद हो सकता है। बहरहाल, क्षमता से 20 फीसदी कम लोड पर यूनिटें चलाई जा रही हैं।
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एेसे आया संकटजानकारी के अनुसार बिहार और छत्तीसगढ़ से 4 से 5 रैक रोजाना आती है, लेकिन अभी कुछ दिन से रोजाना एक या दो रैक ही आ रही। इसमें 4 से 8 हजार टन कोयला ही पहुंच रहा, जबकि उपयोग 18 से 20 हजार होता है। केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण के रिकॉर्ड के अनुसार अभी यहां पांच दिन का कोयला मौजूद है, लेकिन अधिकारी दावा कर रहे है कि रैक एक दो दिन में बढ़ जाएंगी।
थर्मल के अभियंता कह रहे हैं कि बिहार व मार्ग में कई जगह बाढ़ की वजह से लोडिंग कम हो गई है। वहीं कोल माइंस में भी पानी भर गया है, जिससे उत्पादन पर बुरा असर पड़ा है। वहीं, रेलवे ट्रेक और सड़कों पर पानी भरने के चलते भी कोयले की ढुलाई प्रभावित हुई है।
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सुपर क्रिटिकल स्थितिनियमानुसार तो एक माह का कोयला स्टॉक में होना चाहिए। सीईए की गाइडलाइन के मुताबिक सात दिन से कम का कोयला स्टॉक वाले बिजलीघर को क्रिटिकल घोषित कर दिया जाता है। वहीं स्टॉक चार दिन से कम का होने पर सुपर क्रिटिकल श्रेणी में शामिल माना जाता है। कोटा थर्मल में पहले भी कोयले की कमी से चार यूनिट बंद हुई हैं।
88 हजार टन बचा स्टॉक
05 दिन चल सकता है बिजलीघर इससे
04 पांच रैक रोजाना आती थीं
01 ही आ रही है अब
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दुबारा चालू करने में 25 लाख प्रति यूनिट खर्चाथर्मल के अभियंताओं के अनुसार एक इकाई के बंद होने के बाद इसे चालू करने में करीब 25 लाख रुपए खर्च होते हैं। इसमें ऑयल व अन्य संसाधन उपयोग में लिए जाते हैं। जितनी यूनिट बंद होगी उसके अनुसार खर्चा बढ़ जाएगा।
मुख्य अभिंयता कोटा थर्मल एचबी गुप्ता का कहना है कि सही बात है, रैक कम आने से कोयले का स्टाक कम हो रहा है। पांच दिन का ही बचा है। इसकी पूर्ति हो जाएगी। वैसे भी क्षमता से 20 फीसदी कम लोड पर यूनिटें चल रही हैं।