रीको इंडस्ट्रीयल एरिया स्थिति Stone factories से निकलने वाली स्टोन स्लरी के प्रदूषण से जब चम्बल का पानी ही खराब नहीं हुआ घडिय़ालों के रंग तक सफेद पडऩे लगे तो राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) की भोपाल बैंच ने अक्टूबर 2015 में पानी को दूषित करने वाली 267 इकाइयों पर 15 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाने के साथ ही पैसा जमा न कराने तक संचालन पर प्रतिबंध लगा दिया था।
एनजीटी की शर्त के मुताबिक जिन कारखानों में पर्याप्त जगह थी उन्होंने बड़े हौज बनाकर पानी सुखाने का इंतजाम कर दिया। वहीं कुछ बड़े कारखाना मालिकों ने स्लरी से पानी रिसाइकल करने वाले प्लांट लगा दिए, लेकिन छोटे कारखाने स्लरी से पानी अलग करने का कोई इंतजाम नहीं कर सके। नतीजन, 90 फीसदी कारखानों से पत्थर की घिसाई के बाद स्लरी और पूरा पानी टैंकरों में भरकर कर्णेश्वर योजना लो लाइन एरिया के डंपिंग यार्ड में डंप किया जाने लगा।
रोजाना औसतन सौ टेंकर यहां डंप किए जा रहे हैं। नतीजन, तीन सालों में 30-40 फीट गहरे गड्ढे में ऐसा दलदल खड़ा हो गया जो महीनों पहले पूरी तरह भरने के बाद भी सूखने का नाम नहीं ले रहा। हाड़ौती कोटा स्टोन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के संरक्षक विकास जोशी बताते हैं कि इसी दलदल के चलते यूआईटी की स्लरी के ऊपर मिट्टी डलवाने की शर्त पूरी नहीं कर पा रहे। ऐसे में यदि यूआईटी यहां कोई आवासीय योजना लाती है तो उसकी नींव कितनी मजबूत होगी इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्थाओं ने डंपिंग यार्ड से दूषित पानी के रिसकर ग्राउंड वाटर में मिलने की आशंका जताते हुए एनजीटी को उसके आदेशों की अवहेलना और जल प्रदूषण की शिकायत की है। उन्होंने इस इलाके में फ्लोराइड बढऩे की आशंका जताई है। वहीं स्थानीय लोगों ने भी न्यास और निगम के साथ एनजीटी को लिखित शिकायत भेजी है।