न कभी देखा होगा और ना ही सुना होगा पटाखा युद्ध का ऐसा जबरदस्त घमासान, हवेली में लगी आग
ये होता है फायदा मरे हुए बछड़े का मांस सुंघाकर भेंसों को गुस्सा दिलाने के काम के पीछे गुर्जर समाज का एक बड़ा लॉजिक काम करता है। समाज के लोगों का यह मानना है कि इससे यह पता किया जाता है कि भेंस जंगली जानवर से अपने बछड़े की रक्षा कर सकती है या नही। समाज की इस परंपरा को इनकी भाषा मे भैसो को खिलाना बोला जाता है।दरोगा को भारी पड़ गई दारू, नशे में इतने हुए टल्ली कि दिवाली पर मना डाली होली
गोवर्धन के साथ पूजे जाते हैं बैल भेंसों को खिलाने के साथ ही हाड़ौती में एक और परंपरा का निर्वहन आज भी होता है। गोवर्धन के साथ-साथ यहां बैलों की पूजा भी की जाती है। हालांकि खेती-बाड़ी में बढ़ते अत्याधुनिक संसाधनों के कारण अब बैल मिलना मुश्किल हो जाता है, लेकिन यहां आज भी निर्वाध रूप से इस परंपरा का निर्वहन किया जाता है। दीपोत्सव के चौथे दिन गोवर्धन पूजा के बाद किसान बेलो की पूजा करने के लिए 25 हजार से अधिक की आबादी वाले सुल्तानपुर कस्बे में मात्र 2 किसानों के पास बेलो की जोड़ी थी जिनकी पूजा करने के लिए कस्बे के सभी किसान परिवार उमड़ पड़े। कस्बे के बुजुर्गों के अनुसार पहले किसान बेलो से खेती करते थे तो उनकी पहचान भी बेलो से और बैलगाड़ी से होती थी लेकिन समय के साथ अब बेल को छोड़ किसान ट्रैक्टरों से खेती करने लगे है । आज से 4 वर्ष पूर्व कस्बे में एक दर्जन किसानो के पास बेल थे जिनकी धूमधाम से पूजा अर्चना की जाती थी।