बच्चे जिस दरवाजे पर गए वहां के घरों से कहीं अन्न मिला तो कहीं पैसे, कहीं चॉकलेट तो कहीं बिस्क्टि भी बच्चों को दिए गए। छेरछेरा पर्व को लेकर लोगों में खासा उत्साह देखने को मिला कई जगहों पर लोगों का दल पर्व पर गीत गा रहे थे तो कहीं मांदर की थाप सुनाई दे रही थी। लोगों द्वारा करमा नृत्य करते हुए घर-घर जाकर अन्न मांगे वहीं युवकों व बच्चों ने हाथ में टोकरी, बोरी लिए डांडिया नृत्य करते हुए अन्न मांगा।
नव वर्ष के पहले दिन सर्वमंगला मंदिर में सुबह से शाम तक इस तरह श्रद्धालुओं का लगा रहा तांता धार्मिक मान्यता के अनुसार इसी दिन से ग्रामीण अंचलों में शुभ कार्यों की भी शुरुआत हो जाती है। किसान भी खुले हाथों से बच्चों को अन्न का दान करते हैं। इस दिन लोक गीतों की भी बहार रहती है। यह पर्व किसानों की खुशी का पर्व होता है। यह पर्व छत्तीसगढ़ की कृषि प्रधान संस्कृति ग्रामीण जन-जीवन संपदा और समानता को प्रकट करता है।
धान मिंसाई हो जाने के बाद गांवों में घर-घर धान का भंडार रहता है। त्योहार के दिन गांवों में कामकाज पूरी तरह बंद रहता है। इस दिन लोग प्राय: गांव छोड़कर बाहर नहीं जाते। त्योहार के दिन सभी घरों में गुझा, बड़ा, भजिया व मीठा पकवान बनाया जाता है। ग्रामीणों द्वारा अन्न महापर्व के दिन अन्नपूर्णा देवी की पूजा अर्चना विधि विधान से की जाती है।
बच्चों में विशेष उत्साह
बड़े बुजुर्गों की मानें तो कुछ वर्ष पूर्व इस त्यौहार पर विशेष रौनकता दिखाई देती थी, पर अब वो रौनकता नहीं है। लेकिन आज भी छेरछेरा का पर्व बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। बच्चे इसे लेकर काफी उत्साहित होते हैं और इसकी तैयारी में कई दिन पूर्व से ही जुड़ जाते हैं।