विदित हो कि ग्राम आलोर के उत्तर. पश्चिम दिशा में एक छोटी सी पहाड़ी है जिसके ऊपर एक विशाल चट्टान है उस चट्टान के ऊपर एक बड़ा सा पत्थर है। बाहर से बिलकुल सामान्य दिखने वाला यह पत्थर अंदर से स्तुपाकार है मानो जैसे किसी कटोरे को उलट दिया गया हो
इस गुफा का एक ही प्रवेश द्वार है जो सुरंगनुमा है जहां बैठकर या लेटकर ही प्रवेश किया जा सकता है ।अंदर एक साथ 15 से 20 लोग ही बैठ सकते हैं । गुफा के अंदर बीचोंबीच पत्थर का लिंगाई की आकृति है जिसकी ऊँचाई डेढ़ से दो फीट है । इस आकृति को स्थानीय निवासी लिंगई माता कहते हैँ। किंवदंती है कि आज से लगभग 1000 साल पहले एक पारधी शिकारी शिकार करनें जंगल में गया। इधर उधर भटकने के बाद एक खरगोश दिखा। पीछा करने के बाद यह खरगोश जान बचाने गुफा में घुस गया।
दूसरे दिन वे उसकी खोजबीन कर निराश होकर वापस आ गए ।कुछ दिन बाद एक ग्रामीण जो लखापुरिया कोर्राम परिवार से था को सपना आता है कि मैं तुम्हारे कुंदा की आया हूं तथा जो नि:संतान दंपति पूरे सेवाभाव के साथ खीरा लेकर मेरी गुफा में आयेंगे और मुझे चढ़ाकर उसी खीरा को अपनें नाखून से चीरकर कड़वे भाग सहित खायेंगे तो उनकी इच्छा पूरी होगी। इसके बाद से मनौतियां मांगने श्रद्धालु व दर्शनार्थी यहां पहुंचते रहे हैं।