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कोंडागांव

छत्तीसगढ़ किसान ने किया काली मिर्च की नई किस्म का इजात, बताया इसे ब्लैक गोल्ड, देखें Video…

CG News: कोंडागाँव जिले में बस्तर कभी नक्सलियों के लाल आतंक के लिए पहचाना जाता था तो अब लाल आतंक की जगह ब्लैक गोल्ड (काली मिर्च) से भी इसकी पहचान होने वाली है।

कोंडागांवJan 02, 2025 / 03:30 pm

Shradha Jaiswal

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CG News: छत्तीसगढ़ के कोंडागाँव जिले में बस्तर कभी नक्सलियों के लाल आतंक के लिए पहचाना जाता था तो अब लाल आतंक की जगह ब्लैक गोल्ड (काली मिर्च) से भी इसकी पहचान होने वाली है। और बदलते बस्तर को दुनिया देखना चाहती है, नए वर्ष के साथ ही देश के इतिहास में बस्तर का एक और नया अध्याय जुड़ गया। छत्तीसगढ़ का यह इलाका अब “हर्बल और स्पाइस बास्केट” के रूप में दुनिया का ध्यान आकर्षित कराने में सक्षम होता जा रहा है।
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ब्लैक गोल्ड…

दरअसल कोंडागाँव जिले के किसान डॉ. राजाराम त्रिपाठी, जिन्होंने काली मिर्च की एक अद्भुत किस्म विकसित कर पूरे देश को गौरवान्वित किया है। डॉ. त्रिपाठी ने वर्षों के अथक परिश्रम और शोध से काली मिर्च की ‘मां दंतेश्वरी काली मिर्च-16 (MDBP-16) उन्नत किस्म विकसित की है, जो कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी औसत से चार गुना अधिक उत्पादन देती है। इस प्रजाति को हाल ही में भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान (IISR), कोझिकोड, केरल द्वारा मान्यता दी गई है। इसे भारत-सरकार के प्लांट वैरायटी रजिस्टार द्वारा नई दिल्ली में भी पंजीकृत किया गया है।

यह इकलौती उन्नत किस्म-

यह काली मिर्च की इकलौती उन्नत किस्म है जिसे दक्षिणी राज्यों से इतर href="https://www.patrika.com/raipur-news/state-a-odi-trophy-cg-team-reached-the-quarter-finals-after-defeating-mh-19282012" target="_blank" rel="noopener">छत्तीसगढ़ के बस्तर में थे कुल सफलतापूर्वक विकसित किया, बल्कि जिसे भारत सरकार ने नई किस्म के रूप में पंजीकरण की मान्यता भी प्रदान किया है। बस्तर तथा छत्तीसगढ़ के लिए एक बहुत बड़ी तथा गौरवशाली उपलब्धि है।
डॉ. त्रिपाठी की इस काली-मिर्च को विकसित करने में 30 साल का समय लगा। यह लता वर्ग का पौधा है, जो सागौन, बरगद, पीपल, आम, महुआ, और इमली जैसे पेड़ों पर चढ़ाकर उगाई जा सकती है। इन पेड़ों पर उगाई गई काली मिर्च न केवल चार गुना अधिक उत्पादन देती है, बल्कि गुणवत्ता में भी देश की अन्य प्रजातियों से कहीं बेहतर है।
इसलिए बाजार में भी इसे हाथों हाथ लिया जा रहा है और अन्य प्रजाति की काली मिर्च की तुलना में इसके दाम भी ज्यादा मिलते हैं। उन्होंने बताया कि, इस किस्म ने सबसे बेहतरीन परिणाम ऑस्ट्रेलियन टीक (सागौन) पर चढ़कर दिए हैं। खास बात यह है कि यह प्रजाति कम सिंचाई और सूखे क्षेत्रों में भी बिना विशेष देखभाल के पनप सकती है।

बस्तर भी बन रहा मसालों की नई पहचान-

कभी हिंसा और संघर्ष से प्रभावित बस्तर अब वैश्विक बाजार में मसालों का केंद्र बनने की ओर अग्रसर है। डॉ. त्रिपाठी का कहना है कि, आज उनकी काली मिर्च की किस्म देश के 16 राज्यों और बस्तर के 20 गांवों में उगाई जा रही है। लेकिन सरकारी मान्यता मिलने के बाद इस खेती में और तेजी आने की उम्मीद है।
डॉ. त्रिपाठी ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा, “भारत अपने मसालों के लिए सदियों तक सोने की चिड़िया कहलाता था। अगर सरकार और लोग मिलकर मसालों और जड़ी-बूटियों पर ध्यान दें, तो भारत फिर से वह गौरव हासिल कर सकता है।

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