प्रकृति से खिलवाड़ का नतीजा है भीषण तबाही
पूर्वोत्तर में बाढ़ और भूस्खलन से उपजी विभीषिका आपदा प्रबंधन से जुड़े लोगों को भी हैरान कर रही है। प्रकृति से खिलवाड़ का खमियाजा वर्षों से पूर्वोत्तर को लोग भुकतते आए हैं और पिछले कुछ दिनों से भुगत रहे हैं। हर तरफ तबाही के मंजर नजर आ रहे हैं।
प्रकृति से खिलवाड़ का नतीजा है भीषण तबाही
पूर्वोत्तर: हर तरफ तबाही के मंजर
रवीन्द्र राय
कोलकाता. पूर्वोत्तर में बाढ़ और भूस्खलन से उपजी विभीषिका आपदा प्रबंधन से जुड़े लोगों को भी हैरान कर रही है। प्रकृति से खिलवाड़ का खमियाजा वर्षों से पूर्वोत्तर को लोग भुकतते आए हैं और पिछले कुछ दिनों से भुगत रहे हैं। हर तरफ तबाही के मंजर नजर आ रहे हैं। घरों को पानी में समाते, कारों के पानी में तैरते तो बाढ़ के पानी में लोगों को बहते देखा गया। बचाव टीम को हर जगह कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। आफत तो तब आई जब मणिपुर के नोनी जिले में भारी भूस्खलन के बाद प्रादेशिक सेना का एक कैंप धंस गया। 25 से ज्यादा लोगों की मौत परिजनों को आंसू निकालने को मजबूर कर गई। सेना के अधिकारियों के मुताबिक इनमें बंगाल के 11 जवान शामिल थे।
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लाखों लोग परेशान और पीडि़त
पूर्वोत्तर के बाढ़ ग्रस्त राज्यों में मुफ्त में राहत सामग्री पहुंचाने के रेलवे के कदमों से समझा जा सकता है कि हालात कितने बदतर हैं। लाखों लोग किस कदर परेशान और पीडि़त हैं। जनजीवन कैसे पटरी पर से उतर गया है।
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तमाम एजेंसियां जुटी
सेना, राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ), राज्य आपदा मोचन बल (एसडीआरएफ) और अन्य राज्य एजेंसियां राहत और बचाव अभियान में जुटकर लोगों के दर्द कम करने की कोशिश में हैं। लाखों लोगों के प्रभावित होने, सैकड़ों की जान जाने और राहत शिविरों में लाखों लोगों के रहने से साफ पता चल रहा है कि बाढ़ कितनी भीषण है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को खुद बाढ़ के पानी में उतरना पड़ा।
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जलवायु परिवर्तन का भी असर
पूर्वोत्तर में भारी तबाही के पीछे कहीं न कहीं जलवायु परिवर्तन का असर और प्रकृति से छेड़छाड़ को जिम्मेदार माना जा रहा है। बीते एक दशक में पूर्वोत्तर में जंगल काटने से लेकर जमकर खनन किया गया। असम में बाढ़ की विभीषिका को देखकर विशेषज्ञ भी हैरान हैं। वे भी कहने लगे हैं कि पूर्वोत्तर के राज्यों और केन्द्र को मिलकर समुचित कदम उठाने चाहिए। अवैध गतिविधियों पर लगाम जरूरी है। नदियों से गाद निकालकर उसकी गहराई बढ़ाने, नदी किनारे सघन वन लगाने और रेत खनन पर रोक लगाकर ही पूर्वोत्तर को बाढ़ के कहर से बचाया जा सकता है।
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