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– क्या कहता है इनका अनुभव ?
1. उमेश साव : रोजाना दफ्तर के लिए भवानीपुर से सियालदह के लिए बस लेता हूं। अक्सर सुबह के समय कॉलेज छात्र बस पर सवार होते हैं। 4-5 लडक़े गेट के सामने खड़े हो जाते हैं। बस रुकने से उतर जाते हैं और बस के चालू होते ही चलती हुई बस में फिर चढ़ते हैं। इसकी वजह से बस पर चढने-उतरने वाले यात्रियों को परेशानी होती है। छात्र भी कई बार दूसरे वाहनों से टकराते-टकराते बचते हैं।
2. प्रिया अग्रवाल : हावड़ा से शाम को काम से अलीपुर अपने घर लौटते वक्त बस पर मनचलों के चढऩे से परेशान हो जाते हैं। धर्मतल्ला से कुछ युवक व पुरुष बसों पर चढते हैं और गेट के दरवाजे पर खड़े रहते हैं। कभी एक हाथ से बस की रेलिंग को पकड़ कर एक पैर बाहर करके झूलना, कभी चलती हुई बस से छलांग लगाना। उनकी इन हरकतों को देखकर अक्सर अंदर बैठे यात्री डर जाते हैं। उन्हें डांटते-फटकराते हैं तो वे उल्टा मजाक उड़ा दिया करते हैं।
3. रौशनी ठाकुर : मैं रोजाना बेहला से गार्डनरीच स्कूल जाती हूं। तारातल्ला पार करते ही सुबह बस में कुछ ऐसे स्कूली छात्र-छात्राएं बसों पर चढ़ते हैं जो गेट पर खड़े होकर आपस में हंसी-मजाक करते रहते हैं। बड़ो के डांटने के बावजूद वे वहीं खड़े रहते हैं। एक बार मेरी आंखो के सामने 5 साल का एक बच्चा गेट के पास खड़े एक लडक़े के पैर में फसकर गिर गया था। उसके बाद भी उन लोगों ने अपना रवैया नहीं बदला है।
4. रौशन जैन : एक बार मैं अपनी दादी के साथ नारकेलबगान से बड़ाबाजार जा रहा था। जब हम बस पर चढ़ रहे थे तो बस की गेट पर कुछ अंकल खड़े थे। उनके गेट पर खड़े रहने की वजह से मेरी दादी को बस पर चढऩे में दिक्कत हुई। मैंने और बस के कंडक्टर ने उन्हें टोका पर वे हटे नहीं। जब हम बस से उतर रहे थे तब भी वे गेट पर खड़े थे। बस से उतरते वक्त उनमें से एक की घड़ी में मेरी दादी की साड़ी फंस गई और बस के चालू हो जाने से उनकी साड़ी फट गई। बस की गति अगर तेज होती तो कोई बड़ा हदसा घट सकता था।