हिल्सा मत्सयाखेट की परंपरा का पालन करते हैं मछुआरे जो मछुआरे हिल्सा पकड़ते हैं उन्हें बांग्ला नववर्ष पोएला बोइशाख के मौके पर पांता हिल्सा खाना होता है। ऐसी मान्यता हैकि अगर उस दिन पांता हिल्सा खाई जाए तो साल भर जेब भरी रहेगी। परंपराओं के मुताबिक हिल्सा पकडऩे वाले मछुआरे अपनी नावों की, मछली पकड़े वाले जालों की भी पूजा करते हैं। जाल निकाल कर उस पर मीठा या बताशा चढ़ाते है। जब पहली बार हिल्सा जाल में आती है तो उसे जाल पर रखा जाता है। इस पर सिंदूर और हल्दी चढ़ाई जाती है फिर मछली के पेटे के हिस्से को काट कर नाव पर रखा जाता है। मछुआरों की पत्नियां सरस्वती पूजा के दिन हिल्सा के जोड़े पर सिंदूर और हल्दी लगाती हैं। बांग्लादेश के कुमिला और नोवाखाली के मछुआरों की स्त्रियां आरती करके हिल्सा का स्वागत करती हैं। बांग्लाभाषियों के जमाईयों के पर्व जमाई षष्ठी के दिन दामाद ससुराल वालों के लिए हिल्सा लेकर आता है। दामाद को बैठाया जाता है और सास उसे थाली में हिल्सा परोसती हैं।