कोलकाता

गंगा मइया की लहरों ने दिशा क्या बदली हजारों एकड़ जमीन डूबी

गंगा (Ganga)केवल नदी नहीं है। गंगा 11 राज्यों का पानी बंगाल की खाड़ी में लाती है। करोड़ों टन तलछट का भी परिवहन करती है। लाखों हेक्टेयर जमीन को उपजाऊ बनाती है लेकिन यहां हजारों एकड़ जमीन को भी अपनी आगोश में ले लेती है.

कोलकाताAug 29, 2020 / 01:36 pm

Paritosh Dube

गंगा मइया की लहरों ने दिशा क्या बदली हजारों एकड़ जमीन डूबी

कोलकाता. फरक्का बैरेज के नीचे गंगा के तटवर्ती इलाकों के पश्चिम बंगाल स्थित पांच जिलों में रहने वाली लाखों की आबादी तट कटाव की समस्या से जूझ रही है। मालदह, मुर्शिदाबाद, नदिया, हुगली और उत्तर 24 परगना जिलों में हर साल सैकड़ों एकड़ जमीन कटाव का शिकार बनकर नदी में समा रही है। इसका पूरे इलाके के पारिस्थकीय तंत्र, सामाजिक और आर्थिक संरचना पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
विशेषज्ञों के अनुसार ऐसा गंगा की ओर से लाई जा रही 70 करोड़ टन मिट्टी के तलछट के फरक्का के ऊपरी हिस्से में जमा होने व फरक्का के नीचे हिस्से में नदी के प्राकृतिक बहाव में आए परिवर्तन के कारण हो रहा है।
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दस लाख से ज्यादा लोग प्रभावित
गंगा तटबंध कटाव के कारण सर्वाधिक प्रभावित मालदह व मुर्शिदाबाद जिलों में 10 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए हैं। हर साल अकेले मालदह जिले में ही 30 वर्ग किलोमीटर जमीन गंगा में समाती जा रही है। जिसमें बनी संरचनाएं, खेत, आजीविका के साधन नष्ट हो रहे हैं। पश्चिम बंगाल के सिंचाई व व जलपथ परिवहन विभाग के अनुसार फरक् का बैरेज के ऊपर के हिस्से में दो तरह की समस्या हो रही है। गंगा की दिशा बाईं ओर लगातार मुड़ रही है। जिसके कारण भूखंड कटाव की समस्या पैदा होती है। वहीं 11 राज्यों के बाढ़ का पानी इसी चैनल से गुजरता है जिसके कारण सितम्बर महीने में मालदह में बाढ़ आती है।
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केन्द्र- राज्य में समन्वय का अभाव
तट कटाव की समस्या को लेकर केन्द्र और राज्य सरकार के बीच समन्वय का अभाव सामने आता है। केन्द्रीय प्रतिनिधियों के मुताबिक जलशक्ति मंत्रालय की ओर से आयोजित की जाने वाली बैठकों में राज्य के प्रतिनिधि हिस्सा लेने से कतराते हैं। वहीं राज्य से जुड़े प्रतिनिधि कहते हैं कि समस्या के समाधान को लेकर केन्द्र गंभीर नहीं है। इन सबके बीच हजारों पीडि़त हर साल अपनी जमीन, घर गंगा की भूखी लहरों में गंवा कर घरविहीन हो जा रहे हैं।
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हर साल करोड़ों का वारा न्यारा
समस्या के समाधान के लिए राज्य सरकार गंभीर नहीं है। न तो राज्य ने कोई योजना बनाई है और न ही केन्द्र सरकार से सहयोग चाहती है। हर साल कटाव के बाद आपातकालीन कदमों के तहत करोड़ों का वारा न्यारा कर दिया जाता है। फिर वही ढाक के तीन पात वाली स्थिति हो जाती है। कटाव रोकने के लिए सूखे महीनों में काम होना चाहिए। पीडि़तों के मुआवजे में भी अनियमितता बरती जा रही है।
खगेन मुर्मु सांसद उत्तर मालदह
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केन्द्र सरकार गंभीर नहीं
गंगा तट कटाव अकेले बंगाल की समस्या नहीं है। राष्ट्रीय समस्या है। इसके समाधान को लेकर केन्द्र सरकार गंभीर नहीं है। हर साल सितम्बर महीने में जिले का बड़ा इलाका बाढ़ का शिकार बनता है। केन्द्र सरकार को लाखों लोगों की समस्या के स्थाई समाधान का रास्ता तैयार करना चाहिए। राज्य सरकार पीडि़तों के पास खड़ी है। उन्हें मुआवजा, राहत वितरित होती है। अनियमितता के आरोप आधारहीन हैं।
मौसम नूर, पूर्व सांसद उत्तर मालदह व तृणमूल जिलाध्यक्ष

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