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मेहनत की रोटी खाने के लिए दिव्यांग दिखा रहा आत्मनिर्भर बनने की राह

दिव्यांग अपने दोनों पैरों पर खड़े नहीं हो पाने के बावजूद भी काम धंधा करते दो वक्त की रोटी कमा रहा है लेकिन अन्य दिव्यांगों को भी आत्मनिर्भर बनने की राह दिखा रहा है।

कटनीDec 24, 2022 / 02:21 pm

Subodh Tripathi

मेहनत की रोटी खाने के लिए दिव्यांग दिखा रहा आत्मनिर्भर बनने की राह

मेहनत की रोटी खाने के लिए दिव्यांग दिखा रहा आत्मनिर्भर बनने की राह

कटनी. शहर में एक दिव्यांग अपने दोनों पैरों पर खड़े नहीं हो पाने के बावजूद भी काम धंधा करते दो वक्त की रोटी कमा रहा है, ये दिव्यांग खुद तो काम कर ही रहा है, लेकिन अन्य दिव्यांगों को भी आत्मनिर्भर बनने की राह दिखा रहा है। पैस नहीं होने के बावजूद वह कम पैसे में भी काम करके रोज इतना कमा लेता है, जिससे किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े।

कई दिव्यांग अपनी दिव्यांगता को अभिशाप समझकर नीरस जिंदगी जीते हैं, लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं जो समाज के लिए मिसाल हैं।उन्हीं में से एक हैं दिव्यांग बनोरिया सतनामी (55) निवासी बैलटघाट जो कि पोलियो रोग से ग्रसित हैं। पैरों से चल नहीं सकते, लेकिन कभी भी जिदंगी में हार नहीं मानी। अधेड़ावस्था में भी पूरे जज्बे के साथ शहर में घूमकर कारोबार कर रहे हैं और भरण-पोषण कर रहे हैं। बनोरिया ने मोटराइज्ड ट्राइसिकल को खास तरीके से तैयार किया है, उसे रिक्शा जैसा बनवा लिया है। मोटराइज्ड ट्राइसिकल में मालाएं, पूजन की सामग्री, थानों में पहनने वाली अंगूठियां, चूड़ा आदि सामग्री बेच रहे हैं। सीजन के अनुसार कारोबार बदल भी देते हैं। रिकॉडिंग साउंड बॉक्स लेकर पूरे शहर में घूमकर कारोबार कर रहे हैं।

बनोरिया सतनामी ने कहा कि उनके दो बच्चे हैं। बेटा बाहर चला गया है और एक बेटी है। पत्नी के अब न होने व दिव्यांग होने के चलते बेटी की देखभाल नहीं कर पा रहा था। सतनानी बेटी को आश्रयगृह में रखवाकर पढ़ाई करा रहा है, ताकि बेटी सुरक्षित स्थान पर रहकर पढ़-लिखकर आगे बढ़ सके। बनोरिया का कहना है कि कुछ काम करके मेहनत की दो रोटी खाएं, जिसका अलग आनंद है। उन्होंने कहा कि प्रतिदिन १५० रुपए से २०० रुपए कमा लेते हैं, जिससे उनका भरण-पोषण हो जाता है, शेष बेटी के लिए एकत्रित कर रहे हैं।

लोन मिल जाएगा तो बढ़ जाएगा धंधा- बनोरिया सतनामी ने कहा कि सरकार से जबसे बैटरी चलित ट्राइसिकल मिली है तबसे धंधा करने में काफी आराम हो गया है। पहले एक ही स्थान पर सामग्री बेचता था, लेकिन अब शहर में कहीं पर भी जाकर बिकवाली कर पाता हूं। बनोरिया का कहना है कि यदि पीएम स्वनिधि व अन्य योजना के तहत उसे 10 से 15 हजार रुपए का लोन मिल जाए तो धंधा अच्छा चलने लगेगा। पूंजी अधिक न होने के कारण वह कम मात्रा में सामग्री खरीदकर बेच रहा है। बनोरिया को अब इस शहर के लोग पहचानने लगे हैं। लोग उनसे अपनी जरूरत का सामान भी खरीदते हैं।

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दिव्यांगता को न समझें कमजोरी- बनोरिया सतनामी ने पत्रिका से चर्चा के दौरान कहा कि दिव्यांगता कोई अभिशाप नहीं है। उसे कमजोरी न समझे। कई दिव्यांग सामान्य लोगों से बेहतर काम कर रहे हैं। कमजोरी को ताकत बनाएं। दिव्यांग भाई कुछ न कुछ करते हुए मेहनत की रोटी खाएं और लोगों के लिए मिसाल बनें। दशरमन की बेटी सुदामा चक्रवर्ती ने जूडो में गोल्ड मेडल दिलाते हुए जिले का मान बढ़ाया है। एक दिन की कलेक्टर बनकर दिव्यांगों का मान बढ़ाया।

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