जब श्री राम ने इस में पूछा कि यह कैसे तो हनुमान जी ने इसका जो उत्तर दिया वह आप भी पढि़ए कैसे-
सीतहि सेई करौ हित अपना।
सपने बानर लंका जारी,
जातुधान सेना सब मारी।
यह सपना मैं कहौं पुकारी
होइहि सत्य गये दिन चारी। 2- रावण के पाप ने : – हनुमान जी ने कहा हे प्रभु भला मैं कैसे लंका जला सकता हूं। उसके लिए तो रावण खुद ही जिम्मेदार है। क्योंकि वेदों में लिखा है, जिस शरीर के द्वारा या फिर जिस नगरी में लोभ, वासना, क्रोध, पाप बढ़ जाता है, उसका विनाश सुनिश्चित है। तुलसीदास लिखते हैं कि हनुमान जी रावण से कह रहे हैं-
बिमुख राम त्राता नहिं कोपी।
संकर सहस बिष्नु अज तोही,
सकहिं न राखि राम कर द्रोही। 3- सीता के संताप ने : – हनुमान जी ने श्रीराम से कहाए प्रभु रावण की लंका जलाने के लिए सीता माता की भूमिका भी अहम है। जहां पर सती-सावित्री महिला पर अत्याचार होते हैं, उस देश का विनाश सुनिश्चित है। सीता माता के संताप यानी दुख की वजह से लंका दहन हुआ है। सीता के दुख के बारे में रामचरित मानस में लिखा है-
जपति ह्रदय रघुपति गुन श्रेनी।
निज पद नयन दिएं मन रामम पद कमल लीन
परम दुखी भा पवनसुत देखि जानकी दीन।। 4- लंका जलाई विभीषण के जाप ने : – हनुमान जी ने कहा कि हे राम! यह सर्वविदित है कि आप हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। और विभीषण आपके परम भक्त थे। वह लंका में राक्षसों के बीच रहकर राम का नाम जपते थे। उनका जाप भी एक बड़ी वजह है लंका दहन के लिए। रामचरित मानस में तुलसीदास जी ने लिखा है कि लंका में विभीषण जी का रहन-सहन कैसा था-
नव तुलसिका बृंद तहं देखि हरषि कपिराई। 5- लंका जलाई मेरे पिता ने : – हनुमान जी ने कहा भगवन लंका जलाने वाले पांचवें सदस्य मेरे पिता जी पवन देव हैं, क्योंकि जब मेरी पूंछ से एक घर में आग लगी थी तो मेरे पिता ने भी हवाओं को छोड़ दिया था। जिससे लंका में हर तरफ आग लग गई।
अट्टहास करि गरजा पुनि बढि लाग अकास।
सिया राम सब जग जानी…
करेहूं प्रणाम जोरी जुग जानी… ईश्वर में समस्त जग बसता है. .उन्ही के प्रेरणा से ही सब कार्य चल रहे हैं…जब हनुमान जी लंका जलाने जैसे बडे कार्य में अपने को निमित्त मात्र मानते हैं. .तो हम साधारण व्यक्ति अपने किये हुये किसी कार्य का घमंड न करें…इसी भाव के साथ आनंदमयी संध्या का प्रणाम…
उमा सहित यही जपत पुरारी…सीता राम जय सीता राम