बुजुर्गों के अनुसार राज्य के चौथे मुख्यमंत्री टीकाराम पालीवाल ने केन्द्रीय राजनीति में हिण्डौन से लोकसभा चुनाव जीत कर प्रवेश किया। पालीवाल महवा क्षेत्र से विधायक चुन वर्ष 1951 में मुख्यमंत्री बने थे। हालांकि उनका कार्यकाल एक वर्ष से भी कम रहा। दो बार विधायक रहने के बाद वर्ष 1962 में तीसरी लोकसभा के चुनाव में संसदीय क्षेत्र बने हिण्डौन में टीकाराम पालीवाल सांसद निर्वाचित होकर देश की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचे।
बाद में लोकसभा सीट के अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होने पर जगन्नाथ पहाडिय़ा चौथी और पांचवी लोकसभा में वर्ष 1967 और 1971 में कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुने गए। बाद राजनीति का सफर तय कर पहाडिया वर्ष 1980 में प्रदेश के 9 वें मुख्यमंत्री बने। हालांकि उस दौरान वे वैर से विधायक रहे थे। अब दोनों ही नेता दिवंगत हैं। चुनावी सीजन में राजनीतिक चर्चाओं में आज भी इन दोनों के नाम बुजुर्गों की जुवां पर रहते हैं।
हिण्डौन से रहा दोनोंं का जुड़ाव: 44 वर्ष पहले कांग्रेस के विधानसभा प्रत्याशी रहे परसराम राजौरा ने बताया कि जगन्नाथ पहाडिय़ा का हिण्डौन में रिश्तेदारी होने से क्षेत्र से जुड़ाव रहा। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री टीकाराम पालीवाल वकालत के पेशे के चलते हिण्डौन में रहे थे। यह जुड़ाव दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों के लिए सांसद के तौर पर हिण्डौन राजनीति की कार्य स्थली बना।