वर्ष 1965 के युद्ध में गांव के सुबुद्धि राम शहीद हुए थे। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गांव के करीब 25 सैनिकों ने अलग-अलग जगहों पर लड़ाई लड़ी। निसूरा गांव से भारतीय सेना में 12 कैप्टन 25 सूबेदार 50 नायब सूबेदार सहित हवलदार और दर्जनों सिपाही देश की सीमा के प्रहरी रह चुके हैं। गांव के चौपाल और अथाइयों पर सेना से सेवानिवृत सैनिकों के युद्ध पराक्रम के किस्सों पर चर्चाए होती है। जो किशोरों और युवाओं के मन में देशभक्ति की भावना का संचार करती है।
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उम्र ढली पर जज्बा कायम
सेना से वर्षों पहले सेवानिवृत हुए पूर्व सैनिकों की भले ही उम्र ढल गई है, लेकिन मन में देश के प्रति सेवा का जोश, जज्बा अभी भी पहले जैसा ही है। रिटायर्ड कैप्टन टुण्डाराम, कैप्टन समय सिंह गुर्जर, कैप्टन हरस्वरूप, सूबेदार शिवचरण, सूबेदार प्रेमसिंह, हवलदार बहादुरसिंह, हवलदार निहाल सिंह, हवलदार ऐलान सिंह ने बताया कि जरूरत पड़ने पर वे आज भी तैयार दिखेंगे। दुश्मन के दांत खट्टे करने में उनके हौसले कम नहीं हुए। आवाज पड़ी तो सीमा पर जा पहुंचेंगे।
पांच पीढ़ियों से सेना में सेवा
निसूरा के सूबेदार गुलाब सिंह ने प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध की लड़ाई लड़ी। उनके पुत्र गोपाल सिंह फौजी के बाद पौत्र कुलदीप भी सेना में तैनात हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के सैनिक चिम्मन हवलदार के तीनों पुत्र रामेश्वर, कैप्टन सिरमौर हवलदार रामनिवास ने कई युद्धों में भाग लिया। तीसरी पीढ़ी में कैप्टन सिरमोर का पुत्र नटवर व रामेश्वर का पुत्र चंद्रभान सेना में हैं। वहीं हवलदार रतीराम ने द्वितीय विश्व युद्ध लड़ा था। इनके तीनों बेटे फौज में भर्ती हुए। इनके बेटे नरेश, ऐलान भी सेना में हैं।