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कानपुर

गंगा यात्रा सीरीज : कभी जहर था गंगाजल, अब मछलियां करती हैं अठखेलियां

गंगा यात्रा सीरीज : नतीजा यह हुआ कि अब गंगा निर्मल है, पुल की ऊंचाई से मछलियों की अठखेलियां नजर आती हैं। लॉकडाउन के सन्नाटे ने गंगा के किनारों को शांत और सौम्य बना दिया है।

कानपुरMay 05, 2020 / 04:36 pm

Mahendra Pratap

गंगा यात्रा सीरीज : कभी जहर था गंगाजल, अब मछलियां करती हैं अठखेलियां

गंगा यात्रा सीरीज : कभी जहर था गंगाजल, अब मछलियां करती हैं अठखेलियां

लाकडाउन के बाद गंगा का पानी निर्मल हुआ, गंगा मैली नहीं अब स्वच्छ जल वाली नजर आ रही है। लुप्त हुए जलचरों की प्रजातियां भी इस समय नजर आने लगी है। अपने उद्गम स्थल गंगोत्री से निकल कर गंगा कैसे अपने अंतिम गंगासागर में मिलती है। इस बीच जहां-जहां से यह गुजरती है उन शहरों में गंगा का आज क्या हाल है। हम इस बारे में जानेंगे, इस गंगा यात्रा सीरीज में-
पेश है आज गंगा यात्रा सीरीज की चौथी रिपोर्ट:- कानपुर से आलोक पाण्डेय की रिपोर्ट

कानपुर. यूं तो गोमुख से निकलकर गंगासागर तक के सफर में मोक्षदायिनी गंगा का आंचल हरिद्वार से ही मैला होने लगता है। उत्तर प्रदेश में मुरादाबाद के पीतल उद्योग और फर्रुखाबाद-कन्नौज के रंगरेज कारखानों से निकला कचरा गंगाजल को आचमन योग्य भी नहीं रहने देता है। गंगा का अगला पड़ाव है कानपुर, जहां गंगाजल को जहर बनाने में चमड़ा उद्योग ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। दो साल पहले तक कानपुर के घाटों पर गंगा स्नान करने पर संक्रमण का खतरा था।
आईआईटी-कानपुर की रिपोर्ट के मुताबिक औद्योगिक कचरे और बगैर शोधन सीवरेज को गंगा में प्रवाहित करने के कारण गंगाजल में आक्सीजन की मात्रा इस कदर कम हो गई थी कि जलीय जीव-जंतुओं का जिंदा रहना मुश्किल था। यही कारण था कि कानपुर की सरहद में गंगा से डाल्फिन गायब हो गईं थीं। देर आयद-दुरुस्त आयद, प्रदेश की योगी सरकार ने नमामि गंगे अभियान को प्राथमिकता पर रखा। नतीजा यह हुआ कि अब गंगा निर्मल है, पुल की ऊंचाई से मछलियों की अठखेलियां नजर आती हैं। लॉकडाउन के सन्नाटे ने गंगा के किनारों को शांत और सौम्य बना दिया है।
अब रोजगार की चिंता :- दो साल पहले तक गंगा में जहर उड़ेलने वाले टेनरी मालिकों को सरकार का खौफ नहीं था। तमाम चेतावनी के बावजूद रवैया नहीं सुधरा। वक्त के साथ सरकार बदली और योगी सरकार ने नमामि गंगे अभियान में तेजी दिखाते हुए कानपुर के नालों को ट्रीटमेंट प्लांट से जोडऩे का काम युद्धस्तर पर आरंभ कराया। इसी कड़ी में 127 साल पुराने सीसामऊ नाले को गंगा में सीधे गिरने से रोका गया। चेतावनी और सती के बावजूद टेनरी मालिक नहीं सुधरे तो कानपुर की टेनरियों पर शासन का ताला लटक गया। ऐसे में गंगा की रौनक लौटने लगी, गंगाजल भी नहाने और आचमन योग्य हो चुका है। अब गंगा में जलीय जीव-जंतुओं को नया जीवन मिल गया है।
गंगाजल में ऑक्सीजन की मात्रा 10 मिलीग्राम प्रति लीटर से भी ऊपर पहुंच चुकी है। कारखानों के लॉकडाउन के कारण भी गंगाजल काफी साफ हुआ है। 22 मार्च तक गंगा बैराज पर गंगाजल का रंग 15 से 20 हैजन तक था, जबकि अब 8 से 10 हैजन के बीच है। मानक की बात करें तो अधिकतम 25 हैजन तक गंगा के पानी को साफ माना जाता है। कानपुर में पहले गंगा में गिरने वाले टोटल सस्पेंडेड सॉलिड की मात्रा 110 मिलीग्राम प्रति लीटर थी, जबकि इसका मानक 100 मिलीग्राम तय किया गया था। इस समय यह मात्रा घटकर 40 से 50 मिलीग्राम के बीच है।
फिलहाल कोरोना के खौफ ने गंगा के किनारों को शांत कर दिया है। शहर के सभी मरघटों पर सन्नाटा है। कारण यह है कि परिवहन पर रोक है, इसलिए सडक़ हादसों से जिंदगियां महफूज हैं। लॉकडाउन के कारण कुटंब एक साथ हैं, इसलिए गृहकलह के कारण मरने वालों की संख्या शून्य है। एक बात और, किसी वक्त अंतिम यात्रा में मृतक की सामाजिक हैसियत के हिसाब से भीड़ आती थी, अब कंधा देने वाले भी कम पडऩे लगे हैं। कुल मिलाकर मरघट पर सन्नाटा है, स्नान घाट सूने हैं और नतीजे में घाट पर गंदगी नहीं दिखती है। उधर, गंगा किनारे स्थित आनंदेश्वर महादेव मंदिर और सिद्धनाथ मंदिर में भी सन्नाटा पसरा रहता है। कोरोना काल से पहले यहां रोजाना सैकड़ों भक्तों की हाजिरी लगती थी।
पीसीबी क्षेत्रीय अधिकारी एसडी फ्रेंकलिन ने कहाकि, गंगाजल इस वक्त बिल्कुल साफ है। पहले रोजाना नमूने भरे जाते थे, लेकिन अब सप्ताह में एक बार लिए जा रहे हैं। इसकी जांच रिपोर्ट प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुख्यालय को भेजी गई है। वहां कुछ और जांच होनी हैं।

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