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कानपुर

अजब गजब : खुद-ब-खुद उखड़ जाता है ट्रैक, चढ़ाई जाती है चादर तब चल पाती है ट्रेन

कानपुर सेंट्रल के प्लेटमार्फ तीन पर हर रोज आने-जाने वाले मुसाफिरों को ट्रेन से उतरते ही सिर झुकाकर मन्नत मांगनी पड़ती है।

कानपुरJan 10, 2018 / 08:27 am

आकांक्षा सिंह

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कानपुर. यूपी के सबसे बड़े रेलवे स्टेशन में शुमार कानपुर सेंट्रल के प्लेटमार्फ तीन पर हर रोज आने-जाने वाले मुसाफिरों को ट्रेन से उतरते ही सिर झुकाकर मन्नत मांगनी पड़ती है। क्योंकि यहां पर हजरत शाह बाबा की मजार है और हिन्दु-मुस्लिम, सिख और ईसाई समुदाय के भक्त माथा टेकते हैं। मजार पर हर गुरुवार अकीदतमंदों की भीड़ जुटती है। मजार को चिन्हित करने के लिए पंद्रह फुट लंबी और दो फुट चौड़ी जगह पर सफेद रंग पोता गया है। मजार की देखरेख करने वाले मौलवी रहमत अली ने बताया कि करीब पचास साल पहले यहां पर रेलवे पटरियां बिछ रही थी। पूरे दिन काम होता और रात के वक्त पटरियां खुद-ब-खुद उखड़ जाती थीं। यह सिलसिला कई माह तक चलता रहा और रेलवे को अपना काम रोकना पड़ा। रेलवे के अफसर को सपने में आकर बाबा ने मजार के बारे में बताया। अफसर ने मौके पर जाकर देखा तो मजार मिली, जिसका निर्माण कराने के साथ चादर चढ़ाई।


रेलवे के अधिकारी को सपने में आए बाबा
रहमत अली ने बताया कि पटरियों के उखड़ने का सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा। रेलवे ने यहां पर पुलिस को लगावाया बावजूद उनकी आंख के सामने अपने-आप पटरी टूट जातीं। पुलिस भी डर के चलते भाग खड़ी हुई रेलवे ने दस प्लेटफार्म पर काम रूकवा दिया। कुछ दिनों के बाद रेलवे के अधिकारी कसे बाबा ने सपना में आए और यहां पर अपनी मजार कर जानकारी दी। रेलवे के अफसरों ने वहां जाकर देखा तो मजार मिली। रेलवे के अफसर ने अपने पैसे से मजार का निर्माण करवाया। मजार बनने के बाद ट्रैक भी तैयार हो गया। रहमत अली के मुताबिक इस मजार की देखरेख वह निछले तीस साल से करते आ रहे हैं और प्लेटफार्म तीन पर आज तक कोई हादसा नहीं हुआ। साथ ही प्लेटफार्म पर बाकायदा बोर्ड भी लगा हुआ है, जिस पर लिखा है, हजरत सैयद लाइन शाह बाबा मजार, प्लेटफार्म नंबर 3, कृपया सफाई का विशेष ध्यान रखें।


मजार पर लगता है मेला
प्लेटफार्म तीन पर बाबा की मजार पर हर गुरुवार को अकीदतमंदों की भीड़ जुटती है। यह सिलसिला कई सालों से चल रहा है। चादर चढ़ाई जाती है। फूल चढ़ाए जाते हैं। अगरबत्तियां और मोमबत्तियां जलाई जाती हैं। शाम से लेकर रात तक कुछ घंटे को प्लेटफार्म का यह हिस्सा आस्था स्थल के रूप में तब्दील हो जाता है। प्राईवेट जॉब करने वाले दीपक कुमार ने बताया कि दीपक कहते हैं कि वह पिछले दस वर्षों से ट्रेन के जरिए लखनऊ जाते हैं और सुबह बाबा के दर पर माथा टेकते हैं। माह के दो गुरुवार को यहां हम परिवार के साथ दीप जलते हैं और चादर चढ़ते है। वहीं रहमत अली कहते हैं कि गुरूवार को बाबा के दर पर आने वाले अकीदतमंदों की हर मन्नत पूरी होती है। जो भी यहां आकर माथा टेकता है वह खाली हाथ नहीं लौटता। गुरूवार को रात में कव्वाली जैसे कार्यक्रम का आयोजन भी होता है। खास बात ये है कि हिंदू-मुस्लिम दोनों ही यहां आते हैं और सजदा करते हैं।


रोक लगाए जाने के बाद विवाद
रेलवे ने यात्रियों के चलते गुरूवार को चादरपोशी पर रोक लगा दी थी, जिससे मजार की देखरेख करने वालों के साथ अन्य लोगों ने विरोध किया था। रहमत अली ने कहा कि मजार से किसी भी यात्री को कोई दिक्कत नहीं होती, बावजूद रेलवे और आरपीएफ वाले आकर मजार पर चादरपोशी रोकने को कहा, जिसे हमलोगों ने मानने सं इकार कर दिया। शहर कॉजी मौलाना आलम रजा खां नूरी ने बताया कि इस्लाम में मजार को कहीं और शिफ्ट (स्थानांतरित) करने का कोई नियम नहीं है। पर इस मामले में अगर और कोई हालात नहीं बनते तो ससम्मान मजार की शिफ्टिंग पर विचार विमर्श के बाद फैसला लिया जा सकता है। स्टेशन डायरेक्टर जितेंद्र कुमार ने बताया, उच्चाधिकारियों के आदेश का पालन किया जा रहा है। चादरपोशी रोकने का आदेश दे दिया गया है, अगर कोई इस पर व्यवधान डालता है तो उस पर कार्रवाई की जाएगी।

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