कानपुर. सैकड़ों ऐसे क्रांतिकारी हैं, जिनको इतिहास से निकाल दिया जाए तो जिन बड़े चेहरों को आप जानते हैं, पूजते हैं उनका भी अस्तित्व शायद ही होता। बनारस की सरजमीं से भी एक ऐसा क्रांतिकारी निकला, जिसकी रखी नींव पर भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद ने क्रांति का परचम लहराया। उनकी लिखी किताब को क्रांतिकारियों ने गीता और बाइबल की तरह माना। वो पहला क्रांतिकारी जिसे एक बार नहीं, बल्कि दो दो बार काला पानी की सजा के लिए अंडमान की सेल्युलर जेल भेजा गया। देश की वो पहली हस्ती थी जिसने देश में आज से 92 साल पहले राइट टू रिकॉल का आइडिया कानपुर शहर में बैठकर कई क्रांतिकारियों के बीच बनाया था। हम बात कर रहे हैं बनारस के कलम के साथ ही हथियार के बेजोड़ कलाकार सचिन सन्याल की।
इसके चलते सन्याल ने एचआरए बनाया
चौरी चौरा घटना के बाद गांधीजी ने फौरन असहयोग आंदोलन वापस ले लिया। देश का युवा गांधीजी के फैसले से काफी आहत हुआ, राम प्रसाद बिस्मिल की अगुआई में 1922 के गया अधिवेशन में गांधीजी का खुलकर विरोध किया था। सचिन सान्याल ने बिस्मिल के साथ मिलकर अपने क्रांतिकारी संगठन की योजना बनाई। 1923-24 में इसे मूर्त रूप दिया गया, नाम रखा गया हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए)। सचिन सान्याल ने इसका मेनीफेस्टो तैयार किया और उसी में दिया गया देश में पहली बार राइट टू रिकॉल का आइडिया। यानी आपके चुने हुए एमएलए या एमपी अगर आपकी उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते हैं, तो उनका कार्यकाल खत्म होने से पहले ही उनको वोटिंग के जरिए पद से हटाने का अधिकार।
बड़ा चौराहे के होटल में हुई थी मीटिंग
एचडी कॉलेज के पूर्व इतिहास शास्त्र के प्रोफेसर अशोक रस्तोगी ने बताया कि 3 अक्टूबर 1924 के दिन कानपुर के बड़ा चौराहे के पास बने होटल में सचिन सान्याल की अध्यक्षता में सभी बड़े क्रांतिकारियों की एक मीटिंग बुलाई गई थी। जिसमें बिस्मिल को शाहजहांपुर जिले के डिस्ट्रिक्ट कॉर्डीनेटर के पद के साथ-साथ आर्म्स डिवीजन का चीफ बना दिया गया। साथ ही यूनाइटेड प्रॉविंस (आगरा और अवध) के संगठक की भी। प्रोफेसर के मुताबिक सचिन सान्याल को एचआरए का नेशनल ऑर्गेनाइजर बनाया गया और जोगेश चंद्र चटर्जी को अनुशीलन समिति का कॉर्डिनेटर बनाया गया। इसी मीटिंग में एचआरए का नाम तय किया गया और इसी मीटिंग में चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह भगवती चरण बोहरा और बटुकेश्वर दत्त जैसे कई युवा चेहरों को एचआरए में शामिल किया गया।
सचिन क्रांतिकारियों के थे मेंटर
प्रोफेसर ने बताया कि क्रांतिकारी गतिविधियों के मामले में सचिन सान्याल को इन सभी क्रांतिकारियों का मेंटर माना जाता है। भगत सिंह उन दिनों लाहौर से सीधे कानपुर आए थे, 6 महीने यहीं रहे थे। कानपुर में वो पिता के मित्र गणेश शंकर विद्यार्थी से मिले, जो ‘प्रताप’ नाम का अखबार निकालते थे। वहीं से उनको एचआरए के बारे में पता चला, सभी क्रांतिकारी साथियों से मुलाकात हुई। सचिन सान्याल ने जो पार्टी का मेनीफेस्टो लिखा था, उसको नाम दिया गया ‘द रिवोल्यूशनरी’ और सभी युवा क्रांतिकारियों को काम दिया गया कि इस मेनीफेस्टो को ज्यादा से ज्यादा शहरो में युवाओं के बीच पहुंचाया जाए।
कानपुर में बनाई थी काकोरी कांड की योजना
कानपुर के बिठूर में काकोरी ट्रेन डकैती की योजना बनाई गई। इस डकैती कांड से भगत सिंह को अलग रखा गया था। क्योंकि सचिन का मानना था कि अगर सभी लोग इसमें भाग लेंगे और पकड़े गए तो आगे की लड़ाई कमजोर पड़ जाएगी। काकोरी ट्रेन डकैती के बाद रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्लाह खान, राजेन्द्र लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा हुई और सचिन सान्याल समेत कई क्रांतिकारियों को काला पानी की सजा हुई। चंद्रशेखर आजाद और कुंदन लाल गुप्ता जैसे क्रांतिकारियों को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर पाई तो भगत सिंह को काकोरी केस में शामिल ही नहीं किया गया था। उनको लाहौर में एचआरए की टीम खड़ा करने के लिए लाहौर भेज दिया गया था।
आजाद को मिली कमान
काकोरी केस के बाद बिस्मिल को फांसी और सचिन सान्याल के जेल चले जाने के बाद एक बार फिर क्रांतिकारी आंदोलन सुप्तावस्था में चला गया। जिसे बाद में आजाद, भगत सिंह, भगवती चरण बोहरा, बटुकेश्वर दत्त और सुखदेव ने दूसरा जीवन दिया। दिल्ली के फिरोज शाह कोटला मैदान में एचआरए की मीटिंग बुलाई गई और एचआरए में सोशलिस्ट शब्द जोड़कर उसका नाम हिंदुस्तान रिपब्लिकन सोशलिस्ट एसोसिएशन यानी एचआरएसए कर दिया गया। आजाद को उसका अध्यक्ष बना दिया गया। इधर सचिन सान्याल को अंडमान की सेल्युलर जेल भेज दिया गया। सचिन ने जेल में ही अपनी किताब ‘बंदी जीवन’ लिखनी शुरू कर दी। किसी तरह किताब जब छपकर आई तो क्रांतिकारियों को मानो संजीवनी मिल गई। युवाओं के लिए वो गीता और बाइबिल बन गई। लाखों युवाओं के मन पर उस किताब ने अपनी छाप छोड़ी।
पत्र लिखकर अहिंसा की बताई परिभाषा
असहयोग आंदोलन के वापस लेने से आहत सचिन सान्याल ने गांधी जी को लिखा था, “आप बताते हैं कि अहिंसा हिंदुत्व की अवधारणा है, लेकिन हमारे ऋषि मुनियों ने अंत तक अहिंसा की कोई बात नहीं की है, आपद काल में या फिर आखिरी विकल्प के तौर पर विश्वामित्र से लेकर परशुराम तक ने शस्त्र उठाए हैं। गीता में भी युद्ध करने का संदेश है। आप कहते हैं कि हम उनसे मुकाबला नहीं कर पाएंगे, क्योंकि वो ताकतवर हैं तो क्या मुट्ठी भर अंग्रेज हम पर हथियारों के बल पर और बिना हमारी सहमति के शासन करते रहें? हम हथियार उठाएंगे तभी मुकाबला हो पाएगा।” गांधीजी ने भी सचिन को लिख कर जवाब भेजा कि “अहिंसा के साथ कमजोर व्यक्ति भी लड़ सकता है और इससे वो आम जन की लड़ाई बन जाती है, जबकि हथियार के साथ लड़ने वाले बहुत कम हैं, और उनके किए का खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ता है।
1937 में छोड़ गया जेल से, मिले बोस से
सान्याल को बाकी काकोरी आरोपियों के साथ 1937 में जेल से छोड़ दिया गया, लेकिन वो कहां मानने वाले थे, उस
पर उनकी किताब ‘बंदी जीवन’ के चलते वो युवाओं की प्रेरणा बन चुके थे। सरकार उन पर नजर रख रही थी, जैसे ही उन्हें सान्याल के ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के पुख्ता सुबूत मिले, उनको ना केवल फिर से गिरफ्तार कर लिया गया | सचिन को फिर से अंडमान जेल भेज दिया गया। देश पर उन्होंने जीवन कुर्बान कर दिया। हालांकि गिरफ्तारी से पहले वो इतना ज्यादा चर्चा में थे कि 1938 में सुभाष चंद्र बोस ने खुद उनके लखनऊ वाले घर पर जाकर उनसे मुलाकात की थी।
क्रांतिकारियों की खेती के जनक सचिन थे
दिलचस्प तथ्य ये भी था कि तब तक उनके बाद के क्रांतिकारियों की पीढ़ी यानी भगत सिंह, आजाद, सुखदेव, भगवती चरण बोहरा, मदन लाल ढींगरा, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान आदि सब मां भारती के लिए अपनी जान गंवा चुके थे और बटुकेश्वर दत्त. वीर सावरकर आदि जेल में थे। अगर सचिन सान्याल गिरफ्तार नहीं होते, खुलेआम प्रदर्शन में हिस्सा ना लेकर फिर युवाओं की फौज खड़ी करते तो शायद कुछ और हालात होते। लेकिन उनकी दूसरी जेल यात्रा ने उनके मनोबल और स्वास्थ्य दोनों पर असर डाला, आधी जिंदगी जेल में ही गुजर चुकी थी। उनको जेल में टीबी की बीमारी लग गई थी, जो तब तक लाइलाज थी। उनको गंभीर हालत में उन्हें गोरखपुर में टीबी हॉस्पिटल भेजा
गया, लेकिन कामयाबी हाथ नहीं लगी, हालत ज्यादा बिगड़ चुकी थी। 1945 की शुरूआत में ही गोरखपुर में उनकी मौत हो गई। वो उस आजाद भारत को अपनी आंखों से देखने का सपना तक ना पूरा कर सके, जिसके भविष्य की तस्वीर उन्होंने ‘द रिवोल्यूशरी’ में यूनाइटेड रिपब्लिक स्टेट्स ऑफ इंडिया के तौर पर बड़े करीने से बनाई थी।