देश में अंग्रेजों की हुकूमत थी और वह किसानों पर आएदिन लगान बढ़ाकर वसूलते थे। होली पर्व के दिन कानपुर के अंग्रेज कलेक्टर लुईस ने किसानों की लगान में वृद्धि कर दी। इसकी भनक जैसे ही ग्रामीणों को हुई तो वह वाजिदपुर जाजमऊ निवासी जमींदार जगन्नाथ के पास गए। जमींदार कलेक्टर के विरोध में खड़े हो गए और उन्हें जेल जाना पड़ा। जमींदार के पोते पूर्व विधायक रामकुमार बताते हैं कि उनके परदादा जगन्नाथ यहां के जमींदार थे। वर्ष 1917 के करीब अंग्रेज कलक्टर लुईस ने किसानों पर भारी लगान लगा दिया था। जगन्नाथ ने 18 गांवों के किसानों के साथ बैठक की और लगान के खिलाफ जंग छेड़ दी। अंग्रेजों ने साजिश कर जगन्नाथ को गिरफ्तार कर लिया। इससे आक्रोशित होकर किसान व ग्रामीणों ने जोरदार आंदोलन किया। इस दौरान होली का त्यौहार भी था, लेकिन किसी ने रंग नहीं खेला, क्योंकि उनके अगुवा जेल में थे। दबाव में आकर अंग्रेजों ने पंचमी के दिन उनको छोड़ दिया। इसके बाद गांव-गांव जुलूस निकालकर जमकर खुशी मनाई गई और रंग-गुलाल उड़ाया गया। उसी दिन से यहां पर पंचमी के दिन रंग खेलने की परंपरा चली आ रही।
हिन्दू-मुस्लिम मिलकर मनाते हैं पर्व
जाजमऊ के डेढ़ दर्जन गांवों में रंगपंचमी के दिन सैकड़ों लोग अपने-अपने गांवों से टोलियां बनाकर निकलते हैं और गंगा के तट पर पहुंचते हैं और जमकर रंग और गुलाल उड़ाते हैं। इस दिन हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के सभी लोग एक रंग में रंगे होते हैं। प्योंदी गांव निवासी अफसाक बताते हैं कि हमारे बाबा भी कलेक्टर के निर्णय के खिलाफ खड़े हुए और हिन्दू भाईयों के साथ कंधे से कंधा मिलकार रंग का पर्व नहीं मनाया। अफसाक कहते हैं कि आजादी से पहले और आजादी के 70 साल बीत जाने के बाद जाजमऊ इलाके में कभी संप्रदायिक झड़प नहीं हुई। यहां सभी धर्म के लोग आपस में मिलकर त्योहार मनाते हैं। 1917 से चली आ रही परम्परा को हमारे नाती-पोते आगे ले जा रहे हैं।
18 गांवों के लोग खेलते हैं रंग
शहरी क्षेत्र के घाऊखेड़ा, देवीगंज, बीबीपुर, वाजिदपुर, गंगा किनारे के प्यौंदी गांव, शेखपुर, मोतीपुर, जानां गांव, किशनपुर, अलौलापुर समेत करीब 18 गांवों में पंचमी को रंग खेलते हैं। प्यौंदी गांव के बुजुर्ग शिवभूषण बताते हैं कि पिताजी व गांव के अन्य लोग लगान के खिलाफ छेड़ी जंग के बारे में बताया करते थे। आज के युवा पूछते हैं कि पंचमी को हम लोग क्यों रंग खेलते हैं तो उन्हें हम लोग पूरी बात बताते हैं। वह भी खुशी-खुशी पंचमी को जमकर रंग खेल इस परंपरा में शामिल होते हैं। शिवभूषण कहते हैं कि हटिया के बाद हमारे 18 गांवों की होली का एतिहासिक महत्व है। वहां पर रंगबजों ने झंड़ा फहराया था यहां के किसानों ने अंग्रेजों को लगान नहीं देने के लिए होली नहीं मनाई थी। दोनों जगहों पर अंग्रेजों को सरेंडर करना पड़ा था।