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कन्नौज

UP के एक शहर की विदेशों तक फैल रही खुशबू, क्या आप जानते हैं इसकी खासियत?

यह शहर इत्र की खूशबू के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। इस आधुनिक जमाने में भी इत्र भटि्ठयों में बनाया जाता है। यहां इत्र निर्माण की 350 से ज्यादा फैक्ट्रियां हैं।

कन्नौजFeb 23, 2023 / 08:14 am

Adarsh Shivam

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क्या आप जानते हैं उत्तर प्रदेश के एक जिले की देश ही नहीं, विदेशों तक खुशबू फैलती है। उत्तर प्रदेश के इस जिले में काम ही ऐसा होता है। अब आप सोचेंगे ऐसा क्या है? तो आइए उस शहर के बारे में जानते हैं। आज हम आपको कन्नौज के बारे में रोचक जानकारी दे रहे हैं।
भारत में जब जिक्र खुशबू का होता है तो कन्नौज का नाम याद आ ही जाता है। यह शहर इत्र की खूशबू के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। यहां कि मिट्टी के कण-कण में इत्र की महक बसी है। यहां के इत्र की मांग सिर्फ भारत देश ही नहीं, बल्कि विदेशों तक है।
बड़े-बड़े दिग्गज हैं यहां के इत्र के दीवाने
नेता से लेकर अभिनेता तक यहां के इत्र के दीवाने हैं। खाड़ी देशों में इसकी सबसे ज्यादा मांग रहती है। कन्नौज ने आज के समय से ही नहीं, बल्कि प्राचीन समय से इत्र नगरी के नाम से अपनी एक अलग पहचान बनाई है।
600 साल से बनाया जा रहा है इत्र
आइए अब इसके इतिहास के बारे में जानते हैं। कन्नौज में 600 साल से इत्र बनाने के लिए देसी तकनीक इस्तेमाल की जा रही है। टेक्नोलॉजी के इस दौर में भी इस कन्नौज के इस कारोबार पर इसकी हवा नहीं लगी है। इतिहास की मानें तो कन्नौज को इत्र बनाने का नुस्खा फारसी कारीगरों से मिला था।
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इन कारीगरों को मुगल बेगम नूरजहां ने बुलाया था। ये फारसी कारीगर मल्लिका-ए-हुस्न नूरजहां ने गुलाब के फूलों से बनाए जाने वाले एक विशेष प्रकार के इत्र निर्माण के लिए बुलवाए थे। तब से लेकर आज तक कन्नौज में इत्र निर्माण के उस तरीके में कोई खास फर्क नहीं आया है।
लोगों की पहली पसंद में शामिल है कन्नौज का इत्र
आज भी कन्नौज में अलीगढ़ के दश्मक गुलाबों से बना इत्र विश्व में फेमस है। जिस प्रकार से आज फ्रांस के ग्रास शहर का परफ्यूम लोगों की पहली पसंद है, उसी तरह से कभी किसी दौर में कन्नौज का इत्र पहली पसंद हुआ करता था।
कन्नौज का इत्र पूरी तरह प्राकृतिक गुणों से युक्त और एल्कोहल फ्री होता है। इसी वजह से लोग इसे दवा के रूप में भी उपयोग करते हैं। कुछ रोगों जैसे नींद न आना, एंग्जाइटी और स्ट्रेस में इसकी खुशबू रामबाण इलाज मानी जाती है।
लोगों की पहली पसंद है यहां का परंपरागत इत्र
आज भी परंपरागत इत्र की महक पाई जाती है इसमें, जैसे- गुलाब, बेला, केवड़ा, केवड़ा, चमेली, मेहंदी, और गेंदा। इसके अलावा कुछ खास किस्म के इत्र है जैसे- शमामा, शमाम-तूल-अंबर और मास्क-अंबर भी हैं। सबसे कीमती इत्र अदर ऊद है, जिसे असम की एक विशेष लकड़ी आसामकीट से बनाते है। साथ ही यहां के जैसमिन, खस, कस्तूरी, चंदन और मिट्टी अत्तर बेहद मशहूर है।
आइए जानते हैं कैसे तैयार किया जाता है इत्र
टेक्नोलॉजी इतनी बढ़ गई है जिसका जवाब नहीं, लेकिन फिर भी आज के दिन में इत्र को भट्टियों में ही बनाते हैं। गुलाब, गेंदा, बेला या चमेली जिस भी फूल का इत्र बनाना होता है। उससे पहले उसकी पंखुड़ियों को एक बड़े से तांबे के पात्र में डाला जाता है। पात्र में पानी भरकर उसे भट्टी पर चढ़ाते हैं। आग की भट्टी के ऊपर पात्र में पानी रखा जाता है।
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पानी को लगातार गर्म किया जाता है। उससे निकलने वाली भाप ही पात्र में रखी फूलों की पंखुड़ियों को गरम करती है। पंखुड़ियों को गरम करके ही खुशबू या तेल निकाला जाता है। पात्र से निकला हुआ इत्र या तेल एक लकड़ी से पार होते हुए एक सुराही के बर्तन में इकट्ठा किया जाता है। जिस पात्र में तेल या इत्र इकट्ठा किया जाता है उसे भभका कहते है।

60 हजार से ज्यादा लोगों को इत्र कारोबार से मिलता है रोजगार
कन्नौज में इत्र बनाने वाली 350 से भी ज्यादा फैक्ट्रियां हैं। यहां से दुनियाभर के 60 से ज्यादा देशों में इत्र भेजा जाता है। इस कारोबार के लिए फूलों की खेती से 50 हजार से ज्यादा किसान जुड़े हैं। 60 हजार से ज्यादा लोगों को इत्र कारोबार से रोजगार मिलता है। ये इत्र यूएसए, यूके, दुबई, सऊदी अरब, फ्रांस, ओमान, सिंगापुर समेत कई देशों में एक्सपोर्ट होते हैं।

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