वनविभाग की वन्यजीव गणना वर्ष 2019 के अनुसार भेडिय़ों की संख्या शून्य चिह्नित की गई थी । सिरोही जिले के माउंट आबू में भी पिछले दो साल की सैन्सस रिपोर्ट में भी भेडिय़ों की संख्या शून्य ही दर्शाई जा रही है। जबकि पश्चिमी राजस्थान और थार के जैविक तंत्र में भेडिय़ा भोजन शृंखला में सर्वोच्च स्थान पर है। एक दशक पहले जोधपुर के लूणी नदी के क्षेत्र और भोपालगढ़ के पहाड़ी इलाके में सर्वाधिक भेडि़ए विचरण करते थे। लेकिन अवैध खनन और मानवीय हस्तक्षेप से इनकी संख्या में तेजी से गिरावट आती जा रही है। वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार भेडिय़ों की संख्या में कमी का प्रमुख मवेशी पालक इन्हें सबसे बड़ा दुश्मन समझकर मार देना है। इनका परम्परागत प्राकृतवास रिहायशी इलाकों से दूर पहाडिय़ों, तलहटी, नदी, नालों के बीहड़ और सूखी नदियों के पास होता है।
देश के कई प्रमुख जंतुआलय ऐसे हैं जहां टाइगर की संख्या ज्यादा है लेकिन भेडिय़ा एक भी नहीं है। माचिया जैविक उद्यान में भेडिय़ों की उपलब्धता ने देश में जैविक उद्यान में खास दर्जा दिलाया है। देश के ऐसे कई जंतुआलय है जो सीजेडए के नियमों के तहत भेडिय़े के जोड़े के बदले टाइगर अथवा दूसरे आकर्षक वन्यजीवों का जोड़ा तक देने को तैयार हैं। माचिया जैविक उद्यान में गुजरात से लाया गया एशियाटिक लॉयन का जोड़ा भी भेडिय़ों के जोड़े के बदले में मिला था। जयपुर जैविक उद्यान को भी भेडिय़ों के बदले ही लायन और टाइगर मिल चुके है। वनविभाग की ओर से प्रदेश में छह साल पहले भेडिय़ा प्रजनन केन्द्र के लिए जोधपुर व जयपुर में योजना भी तैयार की गई लेकिन यह योजना कागजों में ही सिमट कर रह गई। इस समय माचिया जैविक उद्यान के एन्क्लोजर्स में तीन भेडिय़े बचे हैं।