विनोद ने बताया कि इरफान की आंखें ही काफी थी बात करने के लिए। बिना हरकत के बोलने वाले होंठ और बिना हिले छू सकने वाले हाथ उसके पास थे। बिना बोले अपने सपने सुनाने का हुनर उसके पास था। उसके पास सिनेमा की अपनी अभिनय भाषा थी जिसे आज तक डी-कोड नहीं किया जा सका है। और इन सबके साथ वो शांत विनम्रता भी थी जो हर दौर में विरल होती है। खास तौर से सिनेमा जैसे माध्यम में। थिएटर से हॉलीवुड के बड़े परदे तक पहुंचने की इरफान की यात्रा एक ऐसे पढ़ाकू और विचारशील व्यक्ति की यात्रा है जो अपना गन्तव्य जानता था और उस रास्ते पर अपने नैतिक आख्यानों के साथ चलता रहा।
उसके पास हर फि़ल्म और हर सीन के लिए एक किस्सा होता था। अगर उसके सिनेमा और जीवन का साधारणीकरण किया जाए तो वो कुल मिला कर एक किस्सा-गो की जिदंगी है। उसका सिनेमा पटकथा के बाहर का सिनेमा है। जलसा घर के बाहर का भी जहां इरफान आधी रात आकर अपने दर्शकों को फिल्म से छूट गए किस्से सुनाते हैं। जिंदगी का सबसे मुश्किल वक्त हैं, मेरे लिए जब मेरे अबोले का अनुवाद कर सकने वाला दोस्त तुम पर ये स्मृति-टीप लिख रहा हूं।
तुम्हें उदय प्रकाश की कहानी वारेन हेस्टिंग्स का सांड पर फिल्म बनानी थी और मुझे रघुनंदन त्रिवेदी की तुम्हारी पसंदीदा कहानी छुअन की पटकथा लिखनी थी। आज दोनों ने एक-दूसरे को धोखा दे दिया है। लेकिन तुम्हारा धोखा संगीन है और काबिले-माफ भी नहीं। लाइफ बियोंड डेथ तुम्हारी पसंदीदा किताब थी ना! अब हमेशा तुम उसके साथ जियोगे। तुम्हारी मृत्यु के रहस्य को जानने की बेचैनी से ज्यादा भारी है मेरी दोस्ती! मेरे लिए तुम एक लम्बा मोनोलॉग हो जिसे मैं खत्म नहीं होने दूंगा!