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जोधपुर

स्वतंत्रता सेनानी थे बालमुकुंद बिस्सा, आजादी की लड़ाई लड़ते हुए मात्र 34 साल की उम्र में हो गया निधन

बालमुकुंद बिस्सा महात्मा गांधी के विचारों से काफी प्रभावित थे। बिस्सा एक गांधीवादी नेता के रुप में जाने जाते थे। साल 1934 में उन्होंने चरखा एजेंसी और खादी भंडार की स्थापना भी की।

जोधपुरAug 07, 2022 / 09:00 am

Santosh Trivedi

Azadi Ki Baat: Balmukund Bissa, A Freedom Fighter Died At The Age of 34 While Fighting For Freedom

जालोरी गेट चौराहे पर लगी प्रतिमा

जोधपुर के जालोरी गेट चौराहे पर लगी प्रतिमा स्वतंत्रता सेनानी बाल मुकुंद बिस्सा की है। जिनका जन्म नागौर में डीडवाना के पीलवा गांव में हुआ था। बिस्सा का संबंध पुष्करणा ब्राह्मण समाज से था। उनका जन्म 24 दिसंबर 1908 को हुआ था। उनके पिता के कोलकाता में व्यापार थे। लिहाजा पूरा परिवार वहीं पर रहता था। बालमुकुंद बिस्सा की पढ़ाई भी कोलकाता में ही हुई थी। साल 1934 में वे कोलकाता से जोधपुर लौटे और यहीं पर व्यापार शुरु किया। बालमुकुंद बिस्सा महात्मा गांधी के विचारों से काफी प्रभावित थे। बिस्सा एक गांधीवादी नेता के रुप में जाने जाते थे। साल 1934 में उन्होंने चरखा एजेंसी और खादी भंडार की स्थापना भी की। बिस्सा की “जवाहर खादी” नाम की दुकान आजादी की लड़ाई में भाग लेने वाले क्रांतिकारियों के मिलने और रणनीति बनाने का ठिकाना बन गई थी।

गांधीवादी तरीके से की थी भूख हड़ताल
1942 में जब देश में आजादी की लड़ाई आखिरी मोड़ पर थी। तब मारवाड़ में जयनारायण व्यास के नेतृत्व में जन आंदोलन चल रहा था। व्यास के नेतृत्व में चलने वाले इस आंदोलन में बालमुकुंद बिस्सा ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। बढ़ते आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेज सरकार ने 9 जून 1942 को ‘भारत रक्षा कानून’ के तहत जेल में डाल दिया। वे लंबे समय तक जोधपुर की जेल में बंद रहे। जेल में रहते हुए उन्होंने कैदियों के अधिकारों की लड़ाई भी लड़ी। कैदियों को मिलने वाले खराब भोजन के खिलाफ जेल में ही उन्होंने गांधीवादी तरीके से भूख हड़ताल शुरु कर दी।

https://youtu.be/Ye4cZMaaoX8

34 साल की उम्र में हो हो गया निधन
बिस्सा जून के महीने में गिरफ्तार हुए थे। जिस वक्त राजस्थान में भीषण गर्मी पड़ती है। भीषण गर्मी के बीच भूख हड़ताल की वजह से उनका स्वास्थ्य खराब होने लगा। ज्यादा स्वास्थ्य खराब होने की वजह से उनको अस्पताल में भर्ती कराया गया। ईलाज के दौरान ही बिंदल अस्पताल में उनकी मौत हो गई। देश की आजादी की लड़ाई लड़ते हुए मात्र 34 साल की उम्र में ही 1942 में उनका निधन हो गया था।

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