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नव भर्ती जवानों पर ज्यादा प्रभावमधुश्री ने बताया कि सेना में संवेदना के लिए कोई जगह नहीं होती, वहां हर आदेश की पालना चाहे वो सही हो या गलत, उसे पूरा करना सिखाया जाता है। वहीं सेना में आदेशों की पालना और उसे गतिमान रखने के लिए अधिकारी और जवान के बीच की दूरी भी आवश्यक है। लेकिन ये जवान की समस्या को संवेदना के साथ सुनने और सुलझाने में बाधा बनती है। अपनी समस्या ना अपने अधिकारी को बता पाना, शर्म के मारे साथियों से साझा न कर पाना। परिवार जो पहले से अधिकतर एकांकी हो चुके हैं और सारी समस्याओं के लिए जवान पर निर्भर है। ऐसी स्थिति में मानसिक परेशानी से घिरा जवान समस्या का सामना करने की बजाय अपनी क्षति कर लेता हैं। शुरुआती चरण में व्यक्ति को यह समझना जरूरी है कि उसे परेशानी है और मदद की आवश्यकता है।
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तनावमुक्त रखने के लिए जरूरीमधुश्री ने बताया कि जवानों एवं उनके परिवार की समस्याओं को समझने एवं निराकरण के लिए सामाजिक सपोर्ट सिस्टम का निर्माण करना जरूरी है। वहीं आम्र्ड फोर्सज एवं पैरामिलिट्री फोर्सेस में ट्रेङ्क्षनग के दौरान साइकोलॉजिकल काउंसलर का समावेश होना चाहिए। जवानों की अन्य विभिन्न तरीकों जैसे कि रिक्रिएशन एक्टिविटीज, टैलेंट सर्च एवं नवाचार में सहभागिता हो। वहीं सबसे महत्वपूर्ण स्वयं की जागरूकता जरूरी है। इसी तरह परिवार के लोगों को भी हर बात जवान को बताने से बचना चाहिए। इससे जवान के तनावमुक्त रहने में मदद मिल सकें।