राज्यपाल ने विवि को कहा कि वे राजभवन और राज्य सरकार दोनों को स्टाइपेंड आधारित पीएचडी का प्रस्ताव बनाकर भेजें। कानून मंत्री जोगाराम पटेल ने भी नवीन पीएचडी सीट देने का भरोसा दिलाया। साथ ही 50 लाख रुपए फंड की व्यवस्था करने की बात भी कही। आयुर्वेद विवि में 14 विभाग हैं। उम्मीद है कि सरकार प्रत्येक विभाग में पीएचडी की दो-दो सीट देगी।
गौरतलब है कि राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान
जयपुर, जामनगर आयुर्वेद विवि सहित कुछ संस्थानों में रेगुलर पीएचडी की सुविधा है, लेकिन प्रदेश के पहले व एकमात्र आयुर्वेद विवि में रेगुलर पीएचडी अब तक शुरू नहीं हो पाई थी। इसकी स्थापना 2001 में हुई थी।
एमडी के बाद करेंगे पीएचडी
वर्तमान में आयुर्वेद विवि में आयुर्वेद, होम्योपैथी, यूनानी और प्राकृतिक चिकित्सा में स्नातक डिग्री के साथ स्नातकोत्तर (एमडी) की डिग्री होती है। एमडी एक तरह से रेजिडेंट डॉक्टर होता है। एमडी के बाद पीएचडी होती है। यह वैसे ही पीएचडी है जैसे मेडिकल कॉलेज में नॉन क्लिनिकल विषय माइक्रोबायोलॉजी, पैथोलॉजी, फिजियोलॉजी, एनाटोमी, फार्मेकोलॉजी और बायोकेमेस्ट्री में होती है। यह भी तीन साल की होगी। इसमें सरकार 90 हजार से एक लाख रुपए प्रति महीना स्टाइपेंड भी देगी। राज्यपाल बागड़े ने कहा कि आयुर्वेद भारत की प्राचीन धरोहर है, जिसे आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर खरा उतारना आज की आवश्यकता है। औषध मानकीकरण के बिना आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति का व्यापक प्रचार-प्रसार संभव नहीं है। यह कॉन्फ्रेंस आयुर्वेद की औषधियों को वैज्ञानिक मानकों के अनुरूप बनाने में अहम भूमिका निभाएगी। प्रत्येक दवाई का युगानुरूप सन्दर्भ में मानक होना चाहिए, उसकी ग्रेडिंग होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि हर गांव, हर शहर में आयुर्वेद औषधि निर्माण के लिए उत्कृष्ट कोटि का कच्चा माल मिल जाता हैै। उसकी पहचान करने की आवश्यकता है। आयुर्वेद निरापद चिकित्सा पद्धति है। तुलसी, नीम आदि के पत्तों का सेवन रोग प्रतिकार शक्ति के रूप में किया जाता है। अत: विश्वविद्यालय परिसर में अधिक से अधिक औषधि पादपों का रोपण किया जाना चाहिए, जिससे आयुर्वेद में अध्ययन करने वाले छात्र ज्ञान अर्जन कर उसकी उपयोगिता को समझकर प्रयोग में ला सकें।