गांव के लोग सेवानिवृत्त सैनिकों से प्रेरित होकर सेना में भर्ती हो रहे हैं और इस समय अग्निवीर भर्ती में भी एक दर्जन से अधिक युवाओं ने सफलता पाई है। गांव में सेना की सेवा का एक लंबा इतिहास रहा है। यहां के युवाओं की देशभक्ति का जज्बा प्रेरणादायक हैं। भिर्र गांव बुहाना-पचेरीकला सड़क मार्ग पर स्थित है और इसकी आबादी लगभग 5,000 है। गांव के युवा सुबह-सुबह मैदान में जुटकर सेना की भर्ती की तैयारी करते हैं।
भिर्र गांव में करीब 1,000 सेवानिवृत्त सैनिक है, और जल, थल, वायु, पैरामिलिट्री और अग्निवीर सेवाओं में लगभग 900 युवा देश के विभिन्न इलाकों में देश सेवा कर रहे हैं। इस गांव के सैनिकों ने 1962, 1965, 1971 और कारगिल युद्ध में भाग लिया है और यहां के सैनिकों ने अपनी बहादुरी से देश का नाम रोशन किया है।
सैन्य सेवा का जुनून और तैयारियों की प्रतिबद्धता
गांव के युवाओं में सेना में भर्ती होने की ललक निरंतर बढ़ रही है। सेवानिवृत्त सैनिक न केवल युवाओं को शारीरिक तैयारी करने के लिए मार्गदर्शन देते हैं, बल्कि वे उन्हें सेना के बारे में महत्वपूर्ण टिप्स भी देते हैं। गांव के युवाओं के लिए यह सिर्फ एक करियर नहीं, बल्कि एक कर्तव्य है। सर्दी में भी, जब अधिकांश लोग आराम करते हैं, ये युवा मैदान में पसीना बहाते हैं, अपनी शारीरिक क्षमता और मानसिक दृढ़ता को और सशक्त बनाने के लिए।
भिर्र गांव: देश सेवा का प्रतीक
इस गांव में सेना के प्रति प्यार और सम्मान का यह अजीब और अनोखा रूप है, जो न केवल बुजुर्गों, बल्कि युवाओं में भी देखा जाता है। यहां के लोग अपनी जान की बाजी लगाकर देश की सेवा में लिप्त है और गांव की हर गलियों में देशभक्ति का आभास होता है। सेना में इस गांव की ओर से योगदान को देखकर यह कहा जा सकता है। कि भिर्र सचमुच एक फौजियों की फैक्ट्री’ है। शहीद सुरेन्द्र सिंह मान : प्रेरणा का स्रोत
भिरं गांव के शहीद सुरेन्द्र सिंह मान की शहादत को गांव के लोग गर्व और सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। 22 जुलाई 1995 को ऑपरेशन रक्षक के दौरान जम्मू-कश्मीर के बड़ जिले के सोईबुग गांव में चार आतंकवादियों को मार गिराने के बाद सुरेन्द्र सिंह शहीद हो गए थे। मरणोपरांत उन्हें शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया। उनका परिवार भी देश सेवा में जुटा है और उनकी प्रतिमा गांव के युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। शहीद सुरेन्द्र सिंह मान के परिजन वर्तमान में सेना में कार्यरत है।
तीनों युद्ध में लिया था भाग
सेवानिवृत्त सैनिक बनवारी राम, जिन्होंने 1962, 1965 और 1971 की युद्धों में भाग लिया, बताते हैं कि 1971, के युद्ध के दौरान बाड़मेर में तैनात उनकी टुकड़ी ने पाकिस्तान की जमीन में नब्बे मील तक घुसकर तिरंगा लहराया था, जो आज भी उनके लिए गर्व का कारण है। वह बताते हैं कि युद्ध के तरीकों में काफी बदलाव आया है, अब तकनीकी संसाधनों का उपयोग बढ़ गया है।