जीत चुके पदक सेना मेडल हो या वीर चक्र। महावीर चक्र हो या परमवीर चक्र। युद्ध में वीरता का ऐसा कोई बड़ा पदक नहीं है जो यहां के वीरों ने नहीं जीता हो। पिलानी के निकट बेरी गांव में जन्मे देश के महान सपूत पीरू सिंह शेखावत तो मात्र तीस वर्ष की उम्र में शहीद हो गए थे। उनकी बहादुरी के किस्से अभी भी बच्चे किताबों में पढ़ते है। कई गोलियां लगने के बावजूद अंतिम सांस लेने से पहले भी उन्होंने दुश्मन के कई बंकर नष्ट किए थे। उनकी वीरता को देखते हुए सरकार ने उनको परमवीर चक्र से सम्मानित किया था।
यह भी खास
– सैनिक स्कूल: यहां बच्चे अनुशासन के साथ पढ़ाई व देशभक्ति का पाठ भी पढ़ रहे हैं।
-हर प्रमुख चौराहों पर शहीदों के स्मारक।
-अधिकतर बड़े स्कूल शहीदों के नाम।
-सेना भर्ती कार्यालय
-सैनिकों का अस्पताल
-सैनिकों के लिए कैंटीन
-मुस्लिम समाज की देशभक्ति देखनी है तो देश में जाबासर, नूआं व धनूरी गांव श्रेष्ठ उदाहरण है। छोटे से धनूरी गांव ने देश को 600 से ज्यादा फौजी दिए हैं। अनेक लाडले देश की सरहदों की रक्षा करते हुए शहीद भी हो चुके।
-बुहाना के भिर्र गांव में रिटायर्ड फौजियों की संख्या करीब एक हजार तथा सेवारत फौजियों की संख्या करीब 1200 है।
– खेतड़ी में बाढ़ा की ढाणी में भी करीब 800 से ज्यादा रिटायर्ड व सेवारत फौजी हैं।
अनूठे स्मारक
-उदयपुरवाटी उपखंड के पोषाणा गांव में एक ही स्थान पर पांच शहीदों की मूर्तियां लगी हुई है। यह स्मारक जिले में अपने आप में अनूठा है।
– झुंझुनूं जिला मुख्यालय पर सबसे बड़े स्कूल दो हैं, एक परमवीर चक्र विजेता शहीद पीरू सिंह के नाम से है तो दूसरा स्कूल शहीद कर्नल जेपी जानू के नाम से है। दोनों के ही बड़े स्मारक भी हैं।