प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र रहा झांसी सन् 1857 में हुए देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र झांसी रहा और इसकी दीपशिखा रहीं महारानी लक्ष्मीबाई। यहां पर संग्राम आशंका के मद्देनजर महारानी लक्ष्मीबाई ने झांसी की सुरक्षा के तगड़े इंतजाम करते हुए एक वालंटियर सेना बनानी शुरू की। इस सेना में महिलाओं की भर्ती की गयी और उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया। साधारण जनता ने भी इसमें सहयोग दिया। इसी बीच अंग्रेजों की सेना ने झांसी की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और शहर को घेर लिया। करीब दो सप्ताह की लड़ाई के बाद अंग्रेजों की सेना ने शहर को चारों ओर से घेरकर शहर को अपने कब्जे में ले लिया। हालांकि, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई अपने दत्तक पुत्र दामोदर राव के साथ अंग्रेज़ों से बच कर भाग निकलने में सफल हो गयी। रानी लक्ष्मीबाई झांसी से निकलकर कालपी पहुंची और वहां पर वह तात्या टोपे से मिलीं। इसके बाद महारानी लक्ष्मीबाई कालपी से निकलकर ग्वालियर पहुंची। वहां 18 जून 1858 को ग्वालियर में अंग्रेजों की सेना लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई वीरगति को प्राप्त हुईं।
कविता में संजोकर पेश की रानी झांसी की वीरगाथा रानी झांसी की वीरगाथा को कवियित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपनी कविता के माध्यम से संजोकर जन मानस के सामने बड़े ही सरल अंदाज में लाया है। इससे जनमानस के मनोमस्तिष्क में रानी की छवि उभरकर आती है। उन्हें इसी रूप में याद किया जाता है-खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।