मामला सिर्फ 0.40 प्रतिशत पैसे के फेर का है। इस अंतर से सरकार,व्यापारियों, मंडियों को झटका लग रहा है। मध्यप्रदेश में मंडी शुल्क 1.2 प्रतिशत है तो राजस्थान में यह 1.6 प्रतिशत लिया जा रहा है। इसके अलावा किसान कल्याण कोष शुल्क भी गले की फांस बना हुआ है। इसे कोरोनाकाल में शुरू किया गया था। कोरोना तो चला गया पर यह अब तक लिया जा रहा है। मंडी शुल्क कारोबार कर रहा प्रभावित- प्रदेश की कृषि उपज मंडियों में निकटवर्ती मध्यप्रदेश की तुलना में अधिक मंडी शुल्क वसूला जाता है। कोरोनाकाल में लगाया गया कृषक कल्याण कोष शुल्क भी व्यापार पर भारी पड़ रहा है। साथ ही राजस्थान की मंडीयों में कृषक कल्याण कोष के नाम पर 50 पैसे वसूल किए जाते हैं। जबकि, यह मध्यप्रदेश में नहीं लिया जा रहा है। लेबर चार्ज भी अन्य प्रदेश की अपेक्षा करीब 30 फीसदी अधिक होने से कारोबार को सीधे प्रभावित कर रहा है। ऐसे में भावों में फर्क होने से जिले के किसान अपनी फसल बेचने के लिए सीधे मध्यप्रदेश के मंदसौर, नीमच व अन्य मंडियों में बेचने चले जाते हैं। इससे राजस्व का नुकसान राजस्थान सरकार को हो रहा है।
लगने लगे कृषि आधारित प्लांट-
वहीं जिंसों की खरीद के लिए अन्य राज्यों से आने वाले व्यापारी भी मध्यप्रदेश की ओर रुख कर रहे हैं। मध्यप्रदेश में तो कृषि आधारित प्लांट भी लगने लगे हैं। इसके चलते बाहरी व्यापारियों का झुकाव मध्यप्रदेश की ओर बढऩे से राजस्थान की मंडियों पर असर पड़ रहा है। मक्का की खरीद के लिए पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश से तथा लहसुन की खरीदारी के लिए गुजरात, उत्तर प्रदेश तथा साउथ के खरीदार भी मध्यप्रदेश पहुंच रहे हैं। जबकि झालावाड़ जिले में बड़ी मात्रा में लहसुन की खेती कर लहसुन का उत्पादन किया जाता है।लेकिन यहां तक बाहरी व्यापारियों के नहीं पहुंचने से जिले के लहसुन उत्पादन किसानों को इसका फायदा नहीं मिल पाता है।
अर्थव्यवस्था का आधार है कृषि-
राजस्थान की अर्थव्यवस्था का कृषि मुख्य आधार है। प्रदेश में करीब 247 मंडियां हैं। झालावाड़ जिले में झालरापाटन में हरिश्चन्द कृषि उपजमंडी बड़ी मण्डी है। वहीं मध्यप्रदेश की बड़ी मंडी नीमच में है। ऐसे में यहां के किसान भावों में अंतर के चलते नीमच व मंदसौर का रुख करते हैं।
वसूली बंद होनी चाहिए-
राजस्थान में कोरोनाकाल में शुरू किया गया कृषक कल्याण कोष के नाम पर की जा रही वसूली बंद होनी चाहिए। पहले ही यहां 1.60 रुपए टेक्स लिया जा रहा है,जबकि यह मध्यप्रदेश में नहीं लिया जा रहा है। लेबर चार्ज भी अन्य प्रदेश की अपेक्षा अधिक होने से कारोबार को सीधे प्रभावित कर रहा है।
विजय मुंदड़ा, सचिव खाद्य एवं तिलहन व्यापार संघ, झालरापाटन।