जांजगीर-चांपा. छेरछेरा…माई कोठी के धान ला हेरहेरा…, इसी परंपरागत तरीके से मंगलवार की सुबह से ही गली-मोहल्लों के घरों के दरवाजों पर झोला लिए छोटे-छोटे बच्चों की टोलियां आवाज दे रही थीं। टोलियों में आए इन बच्चों को लोग खुशी से धान, चावल तथा पैसे दे रहे थे। यह त्योहार खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े ही धूमधाम से मनाया गया।
शहर में भले ही बड़ी-बड़ी कालोनी और फ्लैट बन गए हों लेकिन बच्चों की यह टोली जैसे घर के दरवाजे पर दस्तक दी और छेरछेरा…माई कोठी के धान ला हेरहेरा… कहकर चिल्लाना शुरू किया तो शहर की आबोहवा बच्चों की इस गूंज में कुछ देर के लिए खो गया। घरों के भीतर से बच्चे व महिलाएं निकलकर सभी बच्चों के झोले में चालव, धान व पैसे आदि दिए और बच्चों की टोली आगे निकल गए।
यह नजारा शहर के दीप्ती विहार कालोनी और आर्या कालोनी सहित अन्य शासकीय कालोनियों में खूब दिखा। घरों के दरवाजों पर झोला लिए छोटे-छोटे बच्चों की टोलियां आवाज दे रही थी। टोलियों में आए इन बच्चों को लोग खुशी से धान, चावल तथा पैसे दे रहे थे। इस त्यौहार पर गांवों में सभी घर तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। किसानों में इस पर्व को लेकर काफी उत्साह रहता है।
शहर के बाजार रहे वीरान दरअसल यह त्योहार खेती-किसानी समाप्त होने के बाद मनाया जाता है। इस अवसर पर लोग गांवों से बाहर निकलते नहीं हैं। गांव में रहकर ही इस पर्व को मनाते हैं। इस कारण शहर के बाजार में वीरानी दिखी। शहर का बाजार फीका नजर आया।
खोती जा रही परंपरा पहले के जमाने की बात करें तो अब यह परंपरा खोती जा रही है। गांवों में भी कम त्यौहार का नजारा दिखा, लेकिन बड़े बुजुर्गों की मानें तो उनके समय जो धूम रहती थी आज वह दिखाई नहीं देती है।