संस्कृत के महान कवि थे माघ
शहर का ऐतिहासिक गौरव महाकवि माघ संस्कृत के द्वेदप्यमान कवि थे। संस्कृत के महान कवि माघ की जयंती शनिवार को मनाई गई
उपमा कालिदासस्य भारवेरर्थगौरवम्।
दण्डिन: पदलालित्यम् माघे सन्ति त्रयो गुणा।।
अर्थात् : विद्वानों का कहना है कि कालिदास उपमा के लिए प्रसिद्ध हैं, भारवि अर्थ-गाम्भीर्य में और दंडी पद-लालित्य में, लेकिन कविमाघ में ये तीनों गुण मौजूद हैं। कालिदास, भारवी, दण्डी व अश्वघोष की तरह उनका कवित्य लाजवाब है। विद्वानों ने एक स्वर में माघ को भारवि से उत्कृष्ट सिद्ध किया।
‘तावद् या भारवेमार्ति यावन्माघस्य नोदय’
अर्थात् : भारवी (सूर्य) का तेज तब तक ही था, जब तक कि माघ का उदय न हो हुआ।
भीनमाल. शहर का ऐतिहासिक गौरव महाकवि माघ संस्कृत के द्वेदप्यमान कवि थे। संस्कृत के महान कवि माघ की जयंती शनिवार को मनाई गई। माघ संस्कृत के अद्वितीय कवि थे। इनका जन्म लगभग 675 ई में माघ शुक्ल पूर्णिमा को हुआ था। उनकी प्रसिद्ध रचना ‘शिशुपालवधम्’ नामक महाकाव्य है। प्रकृति दृश्यों का वर्णन करने में भी वे दक्ष थे। कालिदास उपमा, भारवि जैसा अर्थ, गौरव व दण्डी जैसा पदलालित्य के दक्ष थे, माघ में यह तीनों गुण दिखते हैं। सातवीं-आठवीं शताब्दी में महाकवि माघ ने अपनी एकमात्र कृति शिशुपाल वध की रचना कर संस्कृत के शीर्षस्थ कवियों में अपना नाम स्थापित किया। महर्षि वाल्मीकि, वेदव्यास, कालिदास व भारवी की परंपरा में महाकवि माघ ने अपनी प्रतिभा को साबित किया। माघ से पूर्ववर्ती कवि भारवि ने 18 सर्गों में किरातार्जुनीयम् महाकाव्य की रचना कर अपूर्व ख्याती बटोरी। उन्होंने कला पक्ष का उत्कर्ष अपने काव्य में दिखाया। भारवि से प्रेरणा लेकर महाकवि माघ ने 20 सर्गों में शिशुपालवधम् की रचना की। इस कृति का अवलोकन कर संस्कृत जगत हतप्रभ रह गया।
पैनोरमो के निर्माण से भावी पीढ़ी को मिलेगी जानकारी
कविमाघ की जन्मभूमि भीनमाल के लिए गर्व की बात है। सरकार की ओर से यहां पर एक करोड़ 79 लाख की लागत से माघ व ब्रह्मगुप्त पैनोरमा का निर्माण कार्य करवाया जा रहा है। पैनोरमा के निर्माण से भावी पीढ़ी को कवि माघ के बारे में जानकारी मिलेगी। माघ, ब्रह्मगुप्त व अन्य श्रीमाल सपूतों के बारे में विस्तृत शोध व अनुसंधान संभव हो सकेगा। भीनमाल की ऐतिहासिक व सांस्कृतिक धरोहरों से विश्व अवगत हो पाएगा।
दानवीर कवि थे…
कहा जाता है कि माघ जितने बड़े कवि थे उतने ही महान दानवीर भी थे। एक बार जब वे रिक्त कोष हो गए, तब अपनी पत्नी को एक श्लोक लिखकर राजा के पास भेजा। ‘कुमुदवनंपश्रि नामक’ इस श्लोक से अभिभूत होकर राजा ने पर्याप्त स्वर्णमुद्राएं कवि की पत्नी को सौंपी, मगर पति के अनुरूप स्वभाव वाली पत्नी ने राह में ही भिक्षुकों को वे मुद्राएं दान कर दी। पत्नी को रिक्त हस्त पाकर माघ बहुत व्यथित हुए व याचकों को खाली हाथ जाते देखकर अपने प्राण त्याग दिए।
माघ से भीनमाल को मिली पहचान…
महाकवि माघ का संस्कृत साहित्य में अद्वितीय योगदान है। महाकवि की जन्मभूमि होने से भीनमाल नगर को देश-दुनिया में पहचाना जाता है। माघ भीनमाल के गौरव हैं। महाकवि माघ का जन्म 675 ईस्वी में बताया गया है।
– शास्त्री प्रवीण त्रिवेदी, भीनमाल
माघ भीनमाल के गौरव…
महान माघ कवि के साथ बड़े दानवीर भी थे। ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि उन्होंने हमेशा भिक्षकों को खाली हाथ नहीं लैटाया। माघ भीनमाल के गौरव हैं। उनकी जयंती पर बड़ा आयोजन करने की आवश्यकता है।
– हनुमान प्रसाद दवे, युवा
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