जालोर. विदेशी आक्रांताओं का मुकाबला करने के लिए वीरभूमि राजस्थान के यौद्धाओं ने अंतिम समय तक लड़ाई लड़ी, लेकिन क्षत्राणियां भी पीछे नहीं हटी। इस वीर भूमि पर जालोर और चित्तौड़ ही नहीं बल्कि अनेक जौहर हुए हैं, जिन्हें जनता आज भी याद करती है और आने वाली पीढि़यों को सुनाती है। हजारों क्षत्राणियां आग में भस्म होकर वीर गति को प्राप्त हुईं। इनमें
जैसलमेर , रणथम्भौर व जालोर के जौहर इतिहास में मुख्य रूप से अंकित हैं।
जौहर और सतीत्व जैसे शब्द इन दिनों
पदमावती फिल्म को लेकर जन-जन की जुबान पर है। आपको बता दें कि तत्कालीन राजपूताने में साढ़े 11 बार जौहर हुए। इनमें से पांच अकेले अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमणों के कारण हुए हैं। यह परम्परा ही खिलजी के समय ही शुरू हुई। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार 1294 से शुरू हुए जौहर 1568 तक 274 साल तक चली। परन्तु इसमें से आधे जौहर मात्र 18 साल के समय में अलाउद्दीन खिलजी के समय ही हुए। जैसलमेर का अंतिम जौहर आधा माना जाता है।
जालोर का जौहर और शाकाअलाउद्दीन खिलजी के नेतृत्व में लम्बे अरसे तक जालोर
दुर्ग पर घेरा रहा। 1311 में बीका दहिया द्वारा किले का भेद दिए जाने पर युद्ध प्रारंभ हुआ। कान्हड़देव और वीरमदेव की वीरगति के बाद जालोर दुर्ग में 1584 महिलाओं ने जौहर किया। जालोर गढ़ में जौहर शीर्षक से पुस्तक लिखने इतिहासकार हरिशंकर राजपुरोहित बताते हैं कि राजस्थान की युद्ध परम्परा में जौहर और शाकों का विशिष्ठ स्थान है। जहां पराधीनता के बजाय मृत्यु का आलिंगन करते हुए यह स्थिति आ जाती है कि अब ज्यादा दिन तक शत्रु के घेरे में रहकर जीवित नही रहा जा सकता तब जौहर और शाके करते थे। इतिहास के व्याख्याता डॉ. सुदर्शनसिंह राठौड़ बताते हैं कि उस समय स्वतंत्रता सबसे प्रमुख हुआ करती थी। दुश्मन के हाथ में पड़कर सतीत्व लुटाने अथवा कैद होकर रहने की चाह मृत्यु से भी बदतर थी। पुरुष शाका अर्थात मृत्यु से अंतिम युद्ध और महिलाएं जौहर करती थी।
राजपूताने के अन्य जौहरचौदहवीं शताब्दी में जैसलमेर का दूसरा साका फिरोजशाह तुगलक के शासन के प्रारंभिक वर्षों में हुआ। योद्धाओं ने शाका किया और दुर्गस्थ वीरांगनाओं ने जौहर।
1423 में गागरोण में अचलदास खींची के शासनकाल में माण्डू के सुल्तान होशंगशाह के आक्रमण के दौरान जौहर हुआ।
1444 में गागरोण में माण्डू के सुल्तान महमूद खिलजी के आक्रमण पर।
1534 में गुजरात के शासक बहादुर शाह के आक्रमण पर राणा सांगा की रानी कर्मावती ने चित्तौड़ में 13 हजार महिलाओं के साथ जौहर किया।
1550 में जैसलमेर में तीसरा जौहर राव लूणकरण के राज में कंधार के शासक अमीर अली के समय में हुआ। इसे आधा जौहर कहा जाता है।
1565 में अकबर की ओर से मोटा राजा उदयसिंह ने सिवाणा पर आक्रमण किया। वीर कल्ला रायमलोत के नेतृत्व में सिवाणा में जौहर हुआ।
1568 में अकबर के चित्तौड़ पर आक्रमण के दौरान तीसरा जौहर हुआ।मेड़तिया जयमल राठौड़ की रानी फूलकुंवर के नेतृत्व में 32 हजार महिलाओं ने जौहर किया और हजारों पुरुषों ने शाका।
रणथम्भौर दुर्ग…इतिहास का पहला जल जौहरइतिहासकारों की माने तो रणथम्भौर दुर्ग में १३०१ ईस्वी में पहला जल जौहर हुआ था। हम्मीर देव की पत्नी रानी रंगादेवी ने रणथम्भौर दुर्ग स्थित पद्मला तालाब में कूदकर जल जौहर किया था। इतिहासकार इसे राजस्थान पहला एवं एकमात्र जल जौहर भी मानते हैं। रानी रंगा देवी ने ये जौहर खिलजी द्वारा रणथम्भौर दुर्ग पर किए आक्रमण के दौरान किया था। अभेद्य दुर्ग रणथम्भौर को आधीन करने में अलाउद्दीन खिलजी को 11 माह का वक्त लगा था।
जैसलमेर…सतियों के हाथ के चिन्हजैसलमेर जिले के इतिहास के पन्नों के अनुसार रावल जैसल के वंशजों ने लगातार 770 वर्ष शासन किया। 1294 में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय भाटी शासक रावल मूलराज, कुंवर रतनसी सहित बड़ी संख्या में योद्धाओं ने असिधारा तीर्थ में स्नान किया और महिलाओं ने जौहर का अनुष्ठान किया। दूसरा जौहर फिरोज शाह तुगलक के शासन में घटित होना बताया जाता है। इस दौरान दुर्ग में वीरांगनाओं ने जौहर किया। 1550 ईस्वी में कंधार के शासक अमीर अली का आक्रमण हुआ था। वीरों ने युद्ध तो किया लेकिन जौहर नहीं हुआ।
चित्तौड़…16,000 ने किया अग्नि स्नान1303 में हुआ था चित्तौड़ का जौहर, खिलजी का लालच था इसकी वजह
चित्तौड़ में 1303 में अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया। तब राणा रतन सिंह की पत्नी पद्मिनी ने चतुराई से शत्रु का सामना किया। अपनी मर्यादा व राजपूती स्वाभिमान की खातिर पद्मिनी ने विजय स्तम्भ के समीप 16 हजार रानियों, दासियों व बच्चों के साथ जौहर की अग्नि में स्नान किया था। उसके बाद १३०५ में खिलजी ने सिवाणा और जालोर का रुख किया था। यहां भी हजारों पुरुषों ने शाका किया और सैकड़ों वीरांगनाओं ने जौहर।
सिवाणा…सिवाना गढ़ पर अकबर का हमलाबाड़मेर जिले के सिवाना गढ़ (दुर्ग) पर भी १३०८ में अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया था। इस दौरान जौहर हुआ। अकबर के काल में इस दुर्ग में राव कल्ला की महारानी और उनकी बहन के जौहर के प्रमाण हैं। ईस्वी सन ११०० के आसपास परमार शासकों ने किले की नींव रखी थी। खिलजी के बाद ईस्वी सन १६०० के आसपास अकबर की सेना ने सिवाना दुर्ग पर आक्रमण किया। उसने दुर्ग का कई बार घेराव किया। वीरता से लड़ते हुए शासक राव कल्ला राठौड़ शहीद हुए। इस पर रानियों ने किले में जौहर किया।
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