विस्तृत सर्वे हो, चिह्नित हो इलाके
उक्त भू-जल का उपयोग हो इसके लिए सरकार को कार्ययोजना बनानी पड़ेगी। विस्तृत सर्वे के बाद ऐसे इलाकों को चिन्हित किया जाए कि किस गहराई तक कितना पानी है इसका परीक्षण हो, गहरे परीक्षण नलकूप खोद कर खारे व मीठे पानी को कैसे अलग रखना है, यह तकनीकी विकसित हो, जिससे किसान को फायदा हो। इसके साथ ही सरस्वती नदी के अनुसंधान को भी पुन: शुरू करा उसके मार्ग की पहचान करने की दरकार है। यह कार्य पुरातन महत्व के साथ सीमा पर पहरा दे रहे जवानो की पेयजल समस्या के समाधान के लिए भी मददगार साबित हो सकेगा।
वरिष्ठ अधिकारी बैठे तो बात बने
सब कुछ होते हुवे भी भू-जल से इस तरह के विकास नहीं होने का सबसे बड़ा कारण जिले मेँ भू जल विभाग के वरिष्ठ भू जल वैज्ञानिक के कार्यालय का नहीं होना भी है। इस तरह के अनुसंधान का नियंत्रण जोधपुर मेँ बैठे अधिकारियों की ओर से किए जाने से परिणाम सही रूप मेँ सामने नहीं आ पा रहे है। सरस्वती नदी अनुसंधान भी यही हुआ। बाहर से नियंत्रण होने से इसकी खोज के परिणाम बीच मेँ ही रह गए। यहां पूर्व मेँ वरिष्ठ भू-जल वैज्ञानिक का कार्यालय रहा है भी है, जिसके कारण से ही जिले मेँ अस्सी के दशक तक कई जगह भू-जल भंडारों की खोज संभव हुईं थी तथा जिले मेँ पेयजल समस्या का समाधान सम्भव हुआ था।