scriptमध्यकाल में निर्मित है ऐतिहासिक भादरियाराय माता मंदिर | The historic Bhadariyara Mata temple is built in the medieval period. | Patrika News
जैसलमेर

मध्यकाल में निर्मित है ऐतिहासिक भादरियाराय माता मंदिर

– श्रद्धालुओं की आस्था का है केन्द्र- उमड़ती है श्रद्धालुओं की भीड़, नवरात्र में होता है मेले का आयोजन

जैसलमेरOct 24, 2020 / 09:05 pm

Deepak Vyas

मध्यकाल में निर्मित है ऐतिहासिक भादरियाराय माता मंदिर

मध्यकाल में निर्मित है ऐतिहासिक भादरियाराय माता मंदिर


पोकरण. मध्यकाल में रियासतों के समय की याद दिलाता परमाणु नगरी पोकरण से 50 किमी की दूरी पर स्थित भादरियाराय माता मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र बना हुआ है। यूं तो यहां वर्षभर ही श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है, लेकिन नवरात्र के दौरान यहां श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ता है। जैैसलमेर के गौरवमयी इतिहास की याद दिलाते भादरियाराय माता मंदिर की स्थापना विक्रम संवत् 1888 में की गई थी। समय के बदलाव के साथ मंदिर का नवनिर्माण व जीर्णोद्धार होता गया। वर्तमान में यहां विशालकाय मंदिर स्थित है, जो आम श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र बना हुआ है। भादरियाराय माता मंदिर में इन दिनों नवरात्रा के दौरान श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचकर दर्शन करते है। विशेष रूप से नवरात्रा के दौरान यहां श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ता है तथा लम्बी कतारें लगती है।
नागर शैली में निर्मित है मंदिर
वर्तमान में यहां विशाल मंदिर स्थित है। यह मंदिर हिन्दुओं के शाक्त पंथ से संबंधित है तथा नागर शैली की वास्तुकला में निर्मित है। इस मंदिर में शिखर का अभाव है। मुख्य मंदिर से कुछ दूरी पर एक पुराना मंदिर स्थित है। यहां पूर्व में भैंसे व बकरे की बलि भी दी जाती थी।
पंजाब से आए संत ने करवाए विकास कार्य
वर्ष 1959 में पंजाब से संत हरवंशसिंह निर्मल महाराज भादरिया मंदिर पहुंचे। वर्ष 1961 मेें उन्होंने जगदम्बा सेवा समिति ट्रस्ट का गठन किया। ट्रस्ट के माध्यम से मंदिर में विकास कार्यों सहित धर्मशाला का निर्माण, गोशाला की स्थापना, गोसंरक्षण के कार्य, पुस्तकालय की स्थापना के कार्य किए गए। संत हरवंशसिंह निर्मल ने कुछ वर्षों तक भादरिया में ही गुफा में रहकर कठोर तपस्या की। जिसके बाद वे भादरिया महाराज के नाम से विख्यात हुए।
ओरण में गोसंवर्धन के किए जा रहे है कार्य
जगदम्बा सेवा समिति के नाम से जैसलमेर के पूर्व महारावल की ओर से यहां सवा लाख बीघा भूमि मंदिर की ओरण के नाम से आवंटित की गई थी। वक्त सैटलमेंट इस भूमि को सिवायचक कर दिया गया। ट्रस्ट की ओर से न्यायालय की शरण लेकर करीब एक लाख बीघा भूमि को पुन: ओरण में बहाल करवाया गया है।
वर्ष में लगते है चार मेले
इस मंदिर में आश्विन व चैत्र माह के नवरात्र तथा ***** व माघ माह के शुक्ल पक्ष में यहां मेलों का आयोजन होता है। इस दौरान श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। हजारों श्रद्धालु यहां आकर दर्शन करते है। शुक्ल पक्ष में नवविवाहित जोड़े अपनी जात लगाने, नवजात शिशुओं के मुंडन के लिए भी यहां पहुंचते है। इसी प्रकार मंदिर के पास भूमिगत विशालकाय पुस्तकालय का भी निर्माण करवाया गया है। यहां हजारों की तादाद में पुस्तकों का संग्रह किया गया है।

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