scriptमौसम परिवर्तन से जीरे की फसल में रोग का खतरा | Risk of disease in cumin crop due to climate change | Patrika News
जैसलमेर

मौसम परिवर्तन से जीरे की फसल में रोग का खतरा

पोकरण. क्षेत्र में इन दिनों बदल रहे मौसम के कारण जीरे की फसल में रोग की आशंका बढ़ गई है। वायुमंडलीय नमी के कारण जीरे में रोग व कीड़ों को पनपने का खतरा मंडरा रहा है। जीरे की फसल को शुष्क व साधारण ठंडे मौसम की आवश्यकता होती है।

जैसलमेरDec 22, 2020 / 08:06 pm

Deepak Vyas

मौसम परिवर्तन से जीरे की फसल में रोग का खतरा

मौसम परिवर्तन से जीरे की फसल में रोग का खतरा

पोकरण. क्षेत्र में इन दिनों बदल रहे मौसम के कारण जीरे की फसल में रोग की आशंका बढ़ गई है। वायुमंडलीय नमी के कारण जीरे में रोग व कीड़ों को पनपने का खतरा मंडरा रहा है। जीरे की फसल को शुष्क व साधारण ठंडे मौसम की आवश्यकता होती है। स्थानीय कृषि विज्ञान केन्द्र के कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि जीरे की फसल में झुलसा रोग, छाछया या सफेद चूर्ण व उकठा रोग आता है। यदि आसमान में बादल छाए हुए हो, तो झुलसा रोग तेजी से फैलता है। इसके प्रभाव से पत्तियोंं व तनों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ते है और पौधा मुरझा जाता है। इसके लक्षण दिखाई देने पर शीघ्र उपचार आवश्यक है। अन्यथा फसल को नुकसान से बचाना मुश्किल है। उन्होंने बताया कि रोग की रोकथाम के लिए बुआई के 30-35 दिन बाद से 10 से 15 दिन के अंतराल में मेंकोजेब या जाइरम दो ग्राम प्रतिलीटर पानी की दर से छिड़काव करते रहना चाहिए। आवश्यकता पडऩे पर किसानों को पुन: छिड़काव करना चाहिए। जीरे की फसल में छाछया या सफेद चूर्ण रोग हो जाने पर बढ़वार रुक जाती है। जिसकी रोकथाम के लिए किसानों को 15 से 20 किलो गंधक चूर्ण प्रतिहेक्टेयर के हिसाब से खेत में भुरकाव करना चाहिए। इसके साथ ही जीरे में उकठा रोग से पौधे मुरझाकर सूख जाते है। जिसके नियंत्रण के लिए फसल चक्र अपनाना चाहिए। जिसका नियंत्रण बहुत मुश्किल है। दो से तीन ग्राम कार्बेन्डाजिम से डरेचिंग करनी चाहिए। इस दौरान पानी अधिक नहीं देना चाहिए। अन्यथा बीमारी अधिक फैलने की संभावना रहती है।

Hindi News / Jaisalmer / मौसम परिवर्तन से जीरे की फसल में रोग का खतरा

ट्रेंडिंग वीडियो