क्यों शुरू हुआ प्रदर्शन?
दरअसल, बाड़मेर-जैसलमेर क्षेत्र में निजी कंपनियां, तेल व बड़ी सोलर और पवन ऊर्जा संयंत्र लगाने में रुचि दिखा रही हैं। ऐसे में बईया गांव के वन भूमि को बड़े पूंजीपतियों को आवंटित कर दिया है, जिससे गांव में पर्यावरण प्रदूषण के साथ ही पशुओं को चरने के लिए दूर-दराज के इलाकों में जाने को मजबूर होना पड़ेगा। जिसका ग्रामीण इसका विरोध कर रहे हैं। ग्रामीणों ने इस संबंध में सीएम को जिला कलेक्टर के माध्यम से ज्ञापन सौंपा। जिसमें उन्होंने मांग की है कि इस क्षेत्र की ओरण भूमि को निजी कंपनी से तत्काल मुक्त कराया जाए। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं, वे यह आंदोलन जारी रखेंगे। क्या होता है ओरण?
ओरण शब्द अरण्य से निकला है, जिसका अर्थ है वन या वनभूमि। ओरण की भूमि पर न तो खेती होती है और न ही इन स्थानों पर पेड़ों की कटाई होती है। इन स्थानों को पूरी तरह से मुक्त रखा गया है, जहां पशु खुलेआम विचरण करते हैं। पक्षियों के लिए भी ओरण वरदान है। ओरण की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसके लिए न तो कोई लिखित कानून है और न ही कोई प्रशासनिक हस्तक्षेप। लेकिन प्रकृति को सौंदर्य और पशु-पक्षियों को आश्रय देने वाले ये ओरण पिछले कुछ सालों से खतरे में हैं। जंगलों को काटकर और झाड़ियों को साफ करके बिजली संयंत्र और पवन चक्कियां लगाई जा रही हैं। ये विकास योजनाएं यहां के पशु-पक्षियों के लिए बोझ साबित हो रही हैं। पिछले दिनों जैसलमेर के देगराय ओरण के रसला सांवता क्षेत्र में बिजली के तारों की चपेट में आने से एक चिंकारा की मौत हो गई थी। इससे पहले ऊंट की भी इसी ओरण में बिजली के तारों की चपेट में आने से मौत हो गई थी।