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जैसलमेर

110 किलोमीटर की दूरी, पर्यटकों की संख्या में 10 गुणा का अंतर

महज 24 वर्षों के अंतराल में दो बार परमाणु परीक्षण के धमाके झेलकर जिस धरती ने भारत की सामरिक ताकत से पूरी दुनिया को वाकिफ करवाया, वह धरती आज भी पर्यटन मानचित्र पर जगह बनाने को तरस रही है।

जैसलमेरDec 20, 2024 / 08:22 pm

Deepak Vyas

jsm nwes
महज 24 वर्षों के अंतराल में दो बार परमाणु परीक्षण के धमाके झेलकर जिस धरती ने भारत की सामरिक ताकत से पूरी दुनिया को वाकिफ करवाया, वह धरती आज भी पर्यटन मानचित्र पर जगह बनाने को तरस रही है। हालात यह है कि स्वर्णनगरी जैसलमेर के फोर्ट, हवेलियों, तालाब व रेतीले धोरों की बराबरी करने वाली परमाणु नगरी आज भी पर्यटकों का इंतजार कर रही है। यही नहीं जैसलमेर जाने वाले पर्यटक पोकरण से होकर गुजरने के बावजूद उनका यहां ठहराव नहीं हो रहा है। जरूरत है तो केवल प्रशासनिक प्रयासों की। यदि प्रशासन, पर्यटन विभाग, जनप्रतिनिधि व क्षेत्र के लोग पोकरण में पर्यटन बढ़ाने के लिए प्रयास करते है तो जैसलमेर जाने वाले पर्यटकों का यहां भी ठहराव हो सकता है। पोकरण से केवल 110 किलोमीटर दूर विश्व प्रसिद्ध स्वर्णनगरी जैसलमेर में सालाना हजारों पर्यटक पहुंचते है और भ्रमण करते है। एक अनुमान के अनुसार प्रतिवर्ष 50 लाख पर्यटक जैसलमेर घूमने के लिए आते है। इनमें से जोधपुर व बीकानेर की तरफ से जैसलमेर जाने वाले 70 प्रतिशत पर्यटक पोकरण होकर गुजरते है। पोकरण में केवल 5 लाख पर्यटक ही रुकते है। अन्य पर्यटक सीधे ही निकलते है। यहां रुकने वालों में भी गुजराती पर्यटक अधिक है, जो रामदेवरा में बाबा की समाधि के दर्शनों के बाद उनके इतिहास से जुड़े फोर्ट, बालीनाथ महाराज के आश्रम के दर्शन करने यहां आते है और फिर जैसलमेर निकल जाते है।

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मिली विश्वस्तरीय पहचान, पर्यटन मानचित्र से दूर

पोकरण फिल्ड फायरिंग रेंज में 1974 व 1998 में हुए परमाणु परीक्षणों के बाद विश्व स्तर पर पहचान बना चुकी परमाणु नगरी को आज भी पर्यटन नगरी बनने का इंतजार है। ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि और यहां की लोक संस्कृति व लोककला की देश में अलग पहचान है। यहां प्रतिवर्ष 5 लाख से अधिक देशी, विदेशी व धार्मिक पर्यटक आते है, लेकिन ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि का पर्याप्त प्रचार नहीं होने से वे यहां की कला से बिना रु-ब-रू हुए ही रवाना हो जाते है। ऐसे में यहां आने वाले सैलानियों से पर्यटन व्यवसाय को परोक्ष रूप से लाभ नहीं मिल पा रहा।

इन मामलों में पोकरण की जैसलमेर से बराबरी

  • जैसलमेर में ऐतिहासिक सोनार किला है तो पोकरण में जोधपुर रियासत का महत्वपूर्ण ठिकाणा रहा बालागढ़ फोर्ट, जिसकी कलात्मकता व झरोखेदार नक्काशी बरबस ही पर्यटकों को आकर्षित करती है।
  • जैसलमेर में ऐतिहासिक गड़ीसर तालाब है तो पोकरण में ऐसे बड़े सालमसागर व रामदेवसर तालाब स्थित है। ये तालाब भी ऐतिहासिक है और इनके घाट लाल पत्थर से बने हुए है।
  • जैसलमेर की पटवा हवेलियों के समान ही पोकरण के पुराने गली मोहल्लों में एक दर्जन से अधिक हवेलियां स्थित है। लाल पत्थर की कलात्मक हवेलियां आज भी पर्यटकों को आकर्षित करने का दम रखती है।
  • जैसलमेर में पीले पत्थर की छतरियां बनी हुई है। उसी के अनुरूप पोकरण में उत्तर की तरफ स्थित पहाड़ी पर लाल पत्थर की कलात्मक छतरियां है। यहां से गुजरने वाले पर्यटक उसे देखते है, लेकिन जानकारी के अभाव में रुकने की बजाय सीधे निकल जाते है।
  • जैसलमेर के खुहड़ी, सम में रेतीले धोरों पर प्रतिवर्ष लाखों पर्यटक पहुंचते है। ऐसे ही पोकरण क्षेत्र के लोहारकी व फलसूंड क्षेत्र में मखमली रेतीले धोरे स्थित है, जिनका संरक्षण व उद्धार करें तो यहां भी पर्यटकों को आकर्षित किया जा सकता है।
  • जैसलमेर में प्रतिवर्ष 3 दिवसीय मरु मेला आयोजित होता है। उसी तर्ज पर पोकरण में भी प्रतिवर्ष 1 दिन का मरु मेले का आयोजन शुरू कर दिया गया है।
  • जैसलमेर में जगह-जगह रेतीले धोरे है। पोकरण के उत्तर दिशा में ऐतिहासिक पहाड़ है। जिस पर बना कैलाश टैकरी मंदिर पर्यटन स्थल बन सकता है।
  • पुराने साथलमेर केे भी निशां उस पहाड़ी पर आज भी स्थित है। जिनका संरक्षण हो सकता है।
  • जैसलमेर के वॉर म्युजियम की तर्ज पर पोकरण में शक्तिस्थल स्थापित किया गया था। यदि उस शक्तिस्थल को पुनर्जीवित किया जाता है तो पर्यटकों के ठहराव के लिए जगह बन सकती है।
  • पोकरण की लाल मिट्टी से बने बर्तन देशी के साथ विदेशी पर्यटकों को भी प्रिय है। यहां आने वाले पर्यटक इसे अवश्य खरीदकर साथ ले जाते है।

ये हो प्रयास तो बने बात

  • पोकरण के ऐतिहासिक स्थलों का पर्यटन विभाग की ओर से वेबसाइट के माध्यम से ऑनलाइन प्रचार कर देश व विदेश में बैठे पर्यटकों को अवगत करवावें। साथ ही यहां के इतिहास व कलात्मक जानकारियों का प्रचार प्रसार करें।
  • तालाबों का जीर्णोद्धार हो और पर्यटकों के घूमने व विश्राम के लिए विशेष व्यवस्था की जाए।
  • शक्तिस्थल का जीर्णोद्धार कर यहां स्थित म्युजियम को पुन: शुरू करें और क्षतिग्रस्त हो चुके मॉडल की मरम्मत करवावें। साथ ही शक्तिस्थल को अत्याधुनिक तरीके से संचालित कर पर्यटकों के लिए शुरू करें।
  • जैसलमेर की तरह पोकरण में भी दो दिन तक मरु मेले का आयोजन किया जाए। यह आयोजन पोकरण के ऐतिहासिक स्थलों, रेतीले धोरों पर करने के साथ इसका प्रचार प्रसार एक महीने पहले से शुरू कर दें। साथ ही विदेशी पर्यटकों को भी इससे जोडक़र उन्हें इन स्थलों के महत्व से अवगत करवावें।
  • लोहारकी व फलसूंड के रेतीले धोरों का संरक्षण कर यहां विकास कार्य करवावेंं और पर्यटकों के लिए तैयार करें।

फैक्ट फाइल

  • 110 किलोमीटर है जैसलमेर-पोकरण की दूरी
  • 1974 व 1998 में हो चुके परमाणु परीक्षण
  • 700 साल से भी पुराना है पोकरण का इतिहास
  • 543 साल पहले बना था पोकरण का ऐतिहासिक लाल किला
  • 5 गांवों में है विशाल मरुस्थलीय मखमली धोरे
  • 7 से अधिक ऐसे धार्मिक स्थल है पोकरण में जहां प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु आते है दर्शनार्थ

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