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जयपुर

क्या होता धर्मांतरण विरोधी कानून? सबसे पहले यह किस राज्य में लागू हुआ

भजनलाल सरकार धर्मांतरण बिल को मंजूरी दी है। आगामी विधानसभा सत्र में यह बिल सदन के समक्ष पेश किया जाएगा। ऐसे में आइए जानतें हैं क्या होता है धर्मांतरण विऱोधी कानून?

जयपुरNov 30, 2024 / 09:16 pm

Suman Saurabh

What is anti-conversion law? In which state was it first implemented
जयपुर। राजस्थान की भजनलाल सरकार ने धर्मांतरण विरोधी बिल को मंजूरी दी है। आगामी विधानसभा सत्र में यह बिल सदन के समक्ष पेश किया जाएगा। शनिवार 29 नवंबर को भजनलाल सरकार की कैबिनेट बैठक में धर्मांतरण विरोधी बिल का प्रस्ताव रखा गया, जिसे सीएम भजनलाल शर्मा ने मंजूरी दी है। भजनलाल सरकार के इस फैसले को काफी अहम माना जा रहा है। ऐसे में आइए जानतें हैं क्या होता है धर्मांतरण विऱोधी कानून? और भारत में सबसे पहले यह किस राज्य में लागू हुआ।

क्या होता है धर्मांतरण विरोधी कानून?

धर्मांतरण विरोधी कानून एक धर्म से दूसरे धर्म में जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए बनाए गए कानून हैं। इन कानूनों के तहत किसी को धोखे से, लालच देकर या धमकी देकर दूसरे धर्म में धर्मांतरित करना गैरकानूनी है। इन कानूनों में अपराध के लिए सजा और जुर्माने का प्रावधान है।

क्यों पड़ी जरूरत

इस कानून के जरिए सरकार समाज में जबरन धर्म परिवर्तन पर लगाम लगाना चाहती है। देश के विभिन्न राज्यों में ऐसे दर्जनों मामले सामने आए हैं, जहां लड़की/लड़के का जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया है। ऐसे में सरकार पर ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का दबाव बना हुआ है। ऐसे मामलों को देखते हुए देश के विभिन्न राज्यों की सरकारों ने धर्मांतरण विरोधी कानून को लेकर कदम उठाए हैं।

ओडिशा में सबसे पहले लागू हुआ धर्मांतरण विरोधी कानून

वर्तमान में देश विभिन्न राज्यों में धर्मांतरण विरोधी कानून है, लेकिन सबसे पहले ओडिशा ने इसे 1967 में लागू किया गया था। इस कानून के तहत जबरन या प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन कराने पर एक साल तक की जेल और 5,000 रुपये तक का जुर्माना तय किया गया था। इसके बाद देश के अन्य राज्य जैसे, गुजरात, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और अरुणाचल प्रदेश राज्यों में धर्मांतरण विरोधी कानून लागू है। राजस्थान ने 2006 और 2008 में इसी तरह का कानून पारित किया था, लेकिन विधेयकों को राज्य के राज्यपाल और राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिल सकी। अब एक बार फिर से राजस्थान सरकार इसे सदन में पेश करने जा रही है।

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