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जयपुर

मारवाड़ के रस्मों रिवाज में रची बसी है अफीम, माना जाता है मनुहार का मेवा

अफीम की मनुहार होती है राजस्थान के मारवाड़ अंचल में… आइए इससे जुड़े और रोचक तथ्य से आपको रूबरू करवाते हैं।

जयपुरFeb 24, 2018 / 11:43 am

Nidhi Mishra

Afeem Farming In Rajasthan - Opium Drug Facts You Should Know

Afeem Farming In Rajasthan – Opium Drug Facts You Should Know

मारवाड़ के रस्मों रिवाज में अफीम घुली है। खासतौर पर ग्रामीण तबकों में ये रिवाज गहराई में रचे बसे हैं। बहुत हैरत की बात है कि राजस्थान के मेवाड़ और मध्य प्रदेश के मालवा में अफीम की खेती बहुतायत से की जाती है, लेकिन इसके सेवन का प्रचलन देखने को मिलता है मारवाड़ी इलाकों में…. मारवाड़ यानी वो इलाका जहां एक समय पानी के लिए लोगों को कोसों दूर जाना पड़ता था, पर अफीम की दीवानगी इस हद तक है कि आप कल्पना नहीं कर सकते। मारवाड़ के जैसलमेर , बाड़मेर व जोधपुर के कुछ ग्रामीण इलाकों में तो अफीम मनुहार का मेवा माना जाता है। अफीम के लिए डिंगल कोष में कई पर्यायवाची हैं। जैसे— नाग-झाग, कसनाग रा, काली, अमल (कुहात), नागफैण, पोस्त (नरक), अफीण, कालागर आदि। आमभाषा में इसे अफीम, अमल, अलम आदि कहा जाता है।
राजस्थानी भाषा में अफीम की उत्पत्ति के विषय में एक दोहा काफी प्रचलित है —


अमल भैंस, ग चावल, चौथी रिजका चार,
इतरी दीना दायजै, वासंग रै दरबार

(मतलब अफीम, भैंस, गेहूँ, चावल और रिजका, घोड़े के लिए हरी घास, कर्ण के विवाह पर ये सब वासंग ने दहेज में दिया था।)
एक कहावत और भी है–

अहिधर मुख सूं ऊपणों, अह- फीण नाम अमल,
(यानी सपं के मुख से जो झाग उपजा, वो अमल नाम से जाना गया)

यूं ली जाने लगी अफीम

मारवाड़ी तबके के समाज में जाम्भेजी संत का खूब प्रभाव था। उनसे प्रेरित होकर राठौड़ों (राजपूत) ने मांस और शराब खाना पीना छोड़ दिया।शराब की जगह अफीम ने ले ली और एक बार जो इसका सेवन शुरू हुआ, तो कभी थमा ही नहीं। कोई शादी हो, सगाई हो, शोक हो, मिलना—बिछड़ना हो, मान- मनुहार करनी हो, मेलजोल बढ़ाना हो या आपसी समझौते के तहत झगड़ा ही खत्म करना हो… अफीम की मनुहार बिना कोई काम सिद्ध नहीं होता। अफीम लेते समय ऐतिहासिक पुरुषों को याद किया जाता है, जिसे “रंग देना’ कहते हैं। इसमें ये लोग ब्रम्हा से लेकर राजाओं, चौधरियों को उनके योगदान के लिए रंग देते हैं। अब क्षेत्र के गांव गांव— ढाणी ढाणी के लोगों के खून में अफीम है। हालांकि अफीम औषधीय पौधा है, लेकिन बिना सरकारी इजाजत अफीम उगाने की मनाही है।
क्या होती है अफीम


अफीम एक पौधा होता है। इस पौधे में डोडा लगता है। इन डोडों को चीरा लगा कर दूध निकाला जाता है। इसी दूध को सुखाकर अफीम बनाई जाती है। अफीम के अंदर लगभग 12 प्रतिशत मॉर्फीन होता है। अफीम के डोडों से डोडा-पोस्त बनाया जाता है। असल में यह एक औषधीय पौधा है। गाँवों में अफीम का प्रयोग दवाओं के रुप में भी करते हैं। शरीर के किसी अंग में दर्द होने पर अफीम की मालिश आराम देती है। किसान अपनी कमर दर्द कम करने के लिए अक्सर इसी का उपयोग करते हैं। अफीम से कब्ज होती है। इसलिए दस्त होने पर अफीम दी जाती है। सर्दी- जुकाम में अफीम गर्म करके दी जाती है। युद्ध के समय मल- मूत्र रोकने के लिए भी अफीम पी जाती थी।
रियाण में होती है मनुहार


रियाण यानी गेट टुगेदर…. इसमें गांव के लोग शामिल होते हैं। मांगणियार बैठते हैं। एक ओर जहां शरीर की नसों में अफीम में घुलती है, वहीं दूसरी ओर मांगणियार अपनी सुरीली आवाज का रस फिजाओं में घोलते हैं। रियाण में एक आदमी अफीम की मनुहार करता है। अमल लेने वालों को तीन बार हथेली भर कर अमल दिया जाता है। इसे तेड़ा कहते हैं। इसके लिए हथेली की अंगुलियों व अंगूठे को जोड़कर एक छोटी तलाई बनाई जाती है। ऐसी हथेली को खोबा कहते हैं। अफीम लेने के बाद अफीमची काव्य भाषा में रंग देने लगता है। रंग गाते हुए वो अपनी अनामिका से हथेली में भरे हुए अफीम से छींटा देता है। परंपरा है कि जब तक अफीम समाप्त न हो, हथेली को बिना हिलाए सामने की तरफ ही रखना पड़ता है।
ये हैं अफीम खाने के तरीके

अफीम को खाने के दो तरीके हैं। एक उसे सुखा कर, दूसरा गलाकर। कुछ लोग सीधा अफीम का दूध ही पी लेते हैं, जो खतरनाक है। अफीम को गला कर खाने का तरीका ज्यादा प्रसिद्ध है। अफीम पिलाते समय तीखी नोक-झोंक भी हो जाती है। किसी को बिना नोक-झोंक नशा ही नहीं चढ़ता। अफीम काफी कड़वी होती है। इसलिए रियाण खत्म होने पर मिसली, बताशे जैसी मीठी चीजें बांटी जाती है। इसे खारभंजणा कहते हैं। आर्थिक स्थिति के अनुसार इसे बांटा जाता है। ज्यादा खारभंजणा देने वालों का मान बढ़ता है। खारभंजणा नाई बांटता है, जिसके बदले उसे नेग दिया जाता है।
इन मामलों में विशेष रूप से होती है मनुहार

आपसी झगड़े शांत करने के लिए अफीम पिलाई जाती है। एक बार जो अफीम पी ली मतलब सब बैर खत्म। गांवों में आज भी सगाई करने जाते हैं तो कहते हैं कि अमल पीने जा रहे हैं। अगर अमल पी लिया तो मतलब रिश्ता पक्का समझ लिया जाता है। सगाई- संबंध के गवाह के रुप में ग्रामीणों को अफीम का हेला यानी न्योता दिया जाता है। अफीम भगवान को भी चढ़ाई जाती है। शोक- संतप्त परिवार से मिलने आए रिश्तेदारों की भी अफीम से मनुहार की जाती है।
रियाण ने राजनीति में भी मचाई हलचल

पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह जसोल भी रियाण को लेकर विवादों में आ गए थे। जसवंत सिंह और नौ दूसरे नेताओं के खिलाफ सामाजिक समारोह में अफीम परोसने का आरोप लगा। स्थानीय अदालत में शिकायत भी दर्ज कराई गई। आपको बता दें कि अपने गांव जसोल में जसवंत सिंह ने एक पारिवारिक समारोह आयोजित किया था। इसमें कई कैबिनेट मिनिस्टर और पार्टी नेता शामिल हुए थे। आरोप था कि मेहमानों को पानी में अफीम मिला कर दी गई थी। हालांकि जसवंत सिंह ने ये कह कर आरोपों का खंडन किया कि वो अफीम नहीं केसर थी।

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