यूं हो रही ठगी
साइबर एक्सपर्ट ने बताया की साइबर ठग सर्च इंजन ऑप्टिमाइजेशन (एसईओ) के जरिए ऐसे की-वर्डस का इस्तेमाल करते हैं जो आमजन की ओर से ज्यादा से ज्यादा उपयोग किए जाते हैं। इसके चलते लोगों की ओर से सर्च करने पर साइबर क्रिमिनल्स की फर्जी वेबसाइट के नतीजे पहले सामने आते हैं। वहीं, कंपनियों की ओरिजिनल साइट नीचे रह जाती है।
लिंक पर क्लिक और ओटीपी शेयर नहीं करें
साइबर ठग बातों में उलझा कर सबसे पहले बैंक डिटेल्स लेते हैं। सेवाएं देने, सहायता करने या फार्म भरवाने के नाम पर ङ्क्षलक या ओटीपी भेज कर ठगी की वारदात को अंजाम देता है। ऐसे में सबसे महत्वपूर्ण है कि किसी लिंक पर क्लिक न करें और ओटीपी शेयर न करें।
केस – एक
बजाज नगर इलाके में टोंक रोड निवासी दिनेश ने रिपोर्ट करवाई कि डॉक्टर से अपॉइंटमेंट लेने के लिए इंटरनेट पर नंबर तलाशा। ऐप इंस्टाल कर रजिस्ट्रेशन करने को कहा। कॉल करने वाले ने कहा टोकन दे देता हूं। काउंटर पर भुगतान कर देना। कुछ देर बाद खाते से 69,986 रुपए कट गए।
केस – दो
सूबेदार मेजर रोहिताश की फोन पे-ऐप की सेवाएं बंद हो गईं। इंटरनेट पर कस्टमर केयर के नंबर तलाशकर बात की तो ठग ने बैंक की जानकारी ले ली। इसके बाद खाते से 2.14 लाख रुपए निकाल लिए गए।
साइबर क्रिमिनल फर्जी वेबसाइट बनाकर खुद के नंबरों का उल्लेख कर देते हैं। कस्टमर धोखे से साइबर ठग को कॉल कर देता है। इंटरनेट साइट पर नंबर देते समय देख लें कि साइट वेरिफाइड है कि नहीं। किसी प्रकार की धोखाधड़ी हो जाए तो हेल्पलाइन 1930 पर सूचित करें।
-रवि प्रकाश मेहरडा, डीजी साइबर क्राइम