इस मौके पर न्यायाधीश भंडारी ने कहा कि लोक अदालत में दोनों पक्षों की सहमति से विवादों का अंतिम निस्तारण होता है, जिससे अपील नहीं होती। प्री लिटिगेशन के जरिए पीडित व्यक्ति मुकदमा दायर करने से पहले भी राहत प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने लोक अदालत में निस्तारित प्रकरणों का आंकड़ा बहुत अधिक होने को लेकर कहा कि इनमें राजस्व प्रकरणों की बहुत बड़ी संख्या होती है।
राजस्थान हाईकोर्ट बार एसोसिएशन अध्यक्ष प्रहलाद शर्मा ने कहा कि लोक अदालत में संबंधित प्रकरण के वकील को मानदेय नहीं मिलता, जिससे इन अदालतों में वकीलों की भूमिका कम रहती है। विधिक सेवा प्राधिकरण के पास करोड़ों रुपए का बजट होता है। यदि लोक अदालत में वकीलों को मानदेय दें तो लंबित मुकदमों की संख्या और बढ़ सकती है।
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पिछले साल चार बार आयोजित राष्ट्रीय लोक अदालतों में कुल एक करोड़ 65 लाख से अधिक प्रकरणों का निस्तारण किया गया, जिनमें से ज्यादातर ऐसे थे जो अदालतों तक पहुंचे ही नहीं और प्री लिटिगेशन के अंतर्गत लोक अदालत में आए। उधर, प्रदेश में हाई कोर्ट सहित प्रदेश की विभिन्न अधीनस्थ अदालतों में लंबित मुकदमों की संख्या करीब तीस लाख है।