संसदीय मामलों के जानकारों के मुताबिक करीब 15 साल पहले चर्चा चली थी कि सरकारों को सत्र चलाने को बाध्य करने के लिए संविधान संशोधन कर दिया जाए, लेकिन यह मुद्दा संसदीय गलियारों में ही खो गया।
दिग्गज बोले…
राज्यसभा सांसद घनश्याम तिवाड़ी ने बताया कि करीब 15 साल पहले जयपुर में पीठासीन अधिकारियों का समेलन हुआ था। उसमें यह तय हुआ था कि विधानसभा सत्र को चलाने के लिए संविधान में संशोधन कर उसे जरूरी किया जाए। दिल्ली में विधेयक लाने पर चर्चा भी हुई, लेकिन सरकार बदल जाने के बाद इस पर आगे कोई कार्रवाई नहीं हो सकी। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष दीपेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा कि पीठासीन अधिकारियों का जब भी समेलन होता है, सत्र चलाने को लेकर चर्चा जरूर होती है। मेरे समय जयपुर में हुए समेलन में भी इस पर चर्चा हुई। बड़े राज्यों की विधानसभा को साल में 60 दिन और छोटे राज्यों की विधानसभा को साल में 40 दिन चलाने का नियम है, लेकिन सरकारें विधानसभा को ज्यादा दिन चलाने के लिए बिजनेस ही नहीं देती। ऐसे में विधानसभा अध्यक्ष कितने दिन सदन को खींच सकता है। अध्यक्ष की अपनी सीमा है।
राजस्थान विधानसभा का तीन सत्र बुलाने के मामले में इतिहास बहुत अच्छा नहीं रहा है। यहां एक भी सरकार ऐसी नहीं रही, जिसने पूरे पांच साल में हर साल तीन सत्र बुलाए हों। वर्ष 2003 से लेकर 2023 तक बीस साल का विधानसभा का इतिहास देखा जाए तो सिर्फ तीन साल ही ऐसे रहे हैं, जब सरकारों ने एक साल में तीन सत्र बुलाए हैं। यह सत्र भी तब बुलाए गए थे, जब नई सरकार का गठन हुआ था।
इसमें भी पहले सत्र में सिर्फ विधायकों की शपथ हुई और अध्यक्ष का निर्वाचन हुआ। किसी तरह का विधायी कामकाज नहीं हुआ। तीन सत्र हुए भी तो 60 दिन सत्र चलाने के नियम की पालना नहीं की गई। 13वीं विधानसभा के गठन के बाद 2009 में तीन सत्र हुए, लेकिन इन तीन सत्रों के दौरान सदन कुल 26 दिन ही चला। 14वीं विधानसभा के गठन के बाद 2014 में तीन सत्र हुए, लेकिन तीनों सत्र भी कुल 30 दिन ही चल पाए। 15वीं विधानसभा के दौरान 2019 में तीन सत्र हुए, लेकिन तीनों सत्रों में कुल मिलाकर 32 दिन ही सत्र चला।