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किड्स कॉर्नर: चित्र देखो कहानी लिखो 14 …. बच्चों की लिखी रोचक कहानियां

किड्स कॉर्नर: चित्र देखो कहानी लिखो 14

जयपुरJan 21, 2025 / 01:38 pm

sangita chaturvedi

किड्स कॉर्नर: चित्र देखो कहानी लिखो 14

किड्स कॉर्नर: चित्र देखो कहानी लिखो 14

परिवार परिशिष्ट (15 जनवरी 2025) के पेज 4 पर किड्स कॉर्नर में चित्र देखो कहानी लिखो 14 में भेजी गई कहानियों में सिजा, ऐशानी और पार्थ परसोइया क्रमश: प्रथम, द्वितीय और तृतीय विजेता रहे। इनके साथ सराहनीय कहानियां भी दी जा रही हैं।
ईमानदारी का पाठ
एक बार की बात है। कुछ बच्चे अपनी दादी मां के साथ रहा करते थे। उनकी दादी मां उन्हें रोज कहानियां सुनाया करती थीं। वो उन्हें समझदारी, ईमानदारी और बहादुरी की कहानियां सुनाया करती थीं। एक दिन उनकी दादी मां उन बच्चों की मासूमियत और ईमानदारी देखने के लिए पास के पार्क में सोने का बॉक्स रखती हैं। उसके बाद वो सभी बच्चे और उनकी दादी मां पार्क में खेलने गए । वहां उन बच्चों को खेलते-खेलते एक बॉक्स दिखाई दिया।
उनकी दादी मां उन्हें दूर खड़ी देख रही थीं। उन बच्चों ने जब उस बॉक्स को खोल के देखा तो सभी अचंभित रह गए क्योंकि उसमें सोना था उसमें से जो सबसे बड़ा बच्चा था। उसने देख के कहा कि वाह हमें ये जो मिला है उससे हम बहुत सारे खिलौने ले सकते हैं। उसकी ये भावना देख के सभी बच्चों ने अपनी अपनी इच्छा बतानी शुरू की। उतने में सबसे छोटे बच्चे ने उस बॉक्स में रखा एक कागज निकाला और कहा इसमें इस बॉक्स के मालिक का नाम और पता लिखा है। हमें इस बॉक्स के बारे में उन्हें बता देना चाहिए क्योंकि दादी मां ने हमें सिखाया था कि जो चीज हमारी ना हो उसे हमें नहीं लेना चाहिए। दादी मां ये देख के बहुत खुश होती हैं। इससे हमें ये सीखने को मिलता है कि हम जैसे संस्कार बच्चों को शुरुआत में देंगे वैसा ही वे करेंगे। सही बात सिखाएंगे, तो वे सही दिशा में चलने के लिए प्रेरित होंगे।
सिजा, उम्र-7वर्ष
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दोस्ती का खजाना
एक छोटे से गांव में पांच दोस्तों का एक समूह रवि, अंकित, मीना, प्रिया और चिंटू एक साथ समय बिताना पसंद करते थे। एक दिन एक पुराने बरगद के पेड़ के पास खेलते समय, वे एक रहस्यमयी लकड़ी के संदूक पर ठोकर खा गए, जो आधा जमीन में दबा हुआ था। उत्साहित और उत्सुक उन्होंने मिलकर उसे खोदने का काम किया। जब उन्होंने संदूक खोला तो उनकी आंखें आश्चर्य से चौड़ी हो गईं। यह सोने के सिक्कों और चमचमाते रत्नों से भरा था। यह एक खजाना होना चाहिए! चिंटू ने कहा। उसकी आवाज उत्साह से कांप रही थी। जब वे खजाने की प्रशंसा करते थे, तो रवि ने कहा, ‘हमें इस खजाने को आपस में बराबर बांटना चाहिए। यह उचित ही है।
समूह में सबसे बुद्धिमान मीना ने कहा, लेकिन निर्णय लेने से पहले, चलो दादी शांति से पूछें। वह हमारे गांव के इतिहास के बारे में सब कुछ जानती हैं। बच्चे संदूक को दादी शांति के घर ले गए और अपनी खोज के बारे में बताया। दादी शांति ने मुस्कुराते हुए कहा, आह, यह संदूक एक दयालु व्यापारी का था जो कई साल पहले यहां रहता था। वह दूसरों को खुशियां देने के लिए अपनी दौलत बांटने में विश्वास करता था। यह खजाना गांव के लिए था, किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं। दोस्तों ने एक-दूसरे की तरफ देखा और सिर हिलाया। रवि ने कहा, दादी, हम इस खजाने का इस्तेमाल गांव के लिए कैसे कर सकते हैं? दादी ने सुझाव दिया, क्यों न एक पुस्तकालय और एक खेल का मैदान बनाया जाए? इस तरह हर कोई आनंद ले सकेगा और सीख सकेगा। बच्चे पूरे दिल से सहमत हुए। उन्होंने संदूक गांव के बुजुर्गों को सौंप दिया, जिन्होंने इसका इस्तेमाल एक सुंदर पुस्तकालय और एक मजेदार खेल का मैदान बनाने के लिए किया। पूरे गांव ने दोस्तों की निस्वार्थता का जश्न मनाया। उस दिन से पांचों दोस्तों की न केवल उनकी खोज के लिए बल्कि उनके बड़े दिलों के लिए भी प्रशंसा की जाने लगी। उन्हें एहसास हुआ कि असली खजाना सोना नहीं बल्कि बांटने और दूसरों को खुश करना है।
ऐशानी, उम्र-6वर्ष
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दादा जी की तिजोरी
एक छोटे से गांव में पांच बच्चे रहते थे, जो हमेशा साथ में खेलते और मजाक करते थे। एक दिन उनमें से एक बच्चे ने एक पुरानी तिजोरी को घर के पीछे से निकाला। तिजोरी को खोलने पर उन्हें आश्चर्य हुआ जब उन्होंने देखा कि उसमें स्वर्ण लड्डू भरे हुए थे। बच्चों ने तिजोरी के बारे में चर्चा करना शुरू किया और तय किया कि वे इसे अपने बीच में बांट लेंगे। लेकिन, तभी उनकी दादी ने उन्हें दूर से देखा और पूछा, तुम लोग यहां क्या कर रहे हो?
बच्चों ने दादी को तिजोरी और स्वर्ण लड्डू दिखाए। दादी ने मुस्कुराते हुए कहा, यह तिजोरी तुम्हारे दादा जी की थी, जिन्होंने इसे तुम्हारे लिए छोड़ा था। लेकिन इसका सही उपयोग करना तुम्हारी जिम्मेदारी है। बच्चों ने दादी की बात मानी और तिजोरी का उपयोग करके अपने गांव के लोगों की मदद करने का फैसला किया। उन्होंने स्वर्ण लड्डू बेचकर पैसे जोड़े और गांव में एक स्कूल और एक अस्पताल बनवाया।
पार्थ परसोइया, उम्र-9वर्ष
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नानी के लड्डू
एक बार नानी के घर कुछ बच्चे शीतकालीन अवकाश की छुट्टियां मनाने के लिए पहुंचे। घर पहुंचते ही बच्चों ने धमा चौकड़ी मचाना शुरू कर दिया। नानी ने कहा बच्चों तुम लोग सफर से आए हो। थोड़ा सा मुंह हाथ धो लो फिर मैं तुम लोगों को खाने के लिए लड्डू दूंगी। बच्चे थोड़े शैतान खोपड़ी थे। उनको कु छ शैतानी सूझी। नानी ने कहा तुम लोग मुंह हाथ धोकर तैयार हो जाओ। तब तक में पड़ोस के घर से कु छ लेकर आती हूं।
नानी गई उसके बाद बच्चों को लगा कि उनको खुशबू आ रही है तो वे सब खुशबू वाली चीज को ढूंढने में लग गए और नानी के कमरे में जाकर लड्डू का डिब्बा खोल लिया। सबने लड्डू खाए। जब तक नानी आई तब बच्चे खेल रहे थे। नानी बोली बच्चों तुमने मुंह हाथ धो लिए। बच्चों ने कहा हां, नानी ने कहा आओ मैं तुम्हें कुछ खाने को देती हूं। तो नानी कमरे में से लड्डू का डिब्बा निकाल कर ले आई। जैसे ही खोल कर देखा, तो उसमें सारे लड्डू गायब थे, तो नानी ने कहा लड्डू कौन चट कर गया। बच्चों में सबसे छोटा बच्चा था बून्नू। वह मासूमियत से बोला नानी लड्डू तो हमने खा लिए। नानी खिलखिला पड़ी।
भूमिका शर्मा, उम्र-8वर्ष
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साहसिक दोस्त और अनमोल खजाना
खेल के मैदान में अनु, मिहिर, रोहन और टीना मस्ती कर रहे थे। अचानक अनु की नजर जमीन में दबे एक संदूक पर पड़ी। उत्सुकता से चारों ने मिलकर उसे खोला। संदूक में सोने के सिक्के और एक पुराना नक्शा था। नक्शा देखकर रोहन चिल्लाया, यह खजाने का नक्शा है! चारों ने मिलकर नक्शे का अध्ययन किया और अगले दिन खजाने की खोज पर निकलने का निश्चय किया। नक्शे के अनुसार खजाना गांव के पास घने जंगल में था। सफर आसान नहीं था।
रास्ते में उन्हें गहरी खाई मिली, जहां रोहन ने अपनी रस्सी से रास्ता बनाया। फिर सांपों से भरे झाड़ी के पास टीना ने लाठी से रास्ता साफ किया। जब वे गुफा के पास पहुंचे, तो अंदर घना अंधेरा था। अनु ने अपनी टॉर्च निकाली और मिहिर ने दीवार पर बने चित्रों को पढ़ा। उन चित्रों ने खजाने तक पहुंचने का मार्ग बताया। अंतत: वे खजाने तक पहुंचे। लेकिन जब संदूक खोला, तो उसमें सोने के सिक्के नहीं, बल्कि एक संदेश था, सच्चा खजाना आपकी दोस्ती, हिम्मत और एकता है। इसे संजोकर रखें। चारों बच्चों ने यह समझा कि असली खजाना वह अनुभव और मूल्य थे, जो उन्हें इस यात्रा में मिले। वे खुशी-खुशी घर लौट गए। सीख- टीमवर्क और अनुभव जीवन के असली खजाने हैं।
लावण्या सिंह, उम्र-11वर्ष
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दादी और पांच पोते
एक दादी के पांच पोते थे गोलू, मोती, मयंक, विकु और राजू उन पांचों में से सबसे बड़ा मयंक और सबसे छोटा राजू था। एक दिन दादी ने अपने पांचों पोतों को एक साथ बुलाया और कहा कि मैं तुम्हें एक सुराग देती हूं। तुम्हें मिलकर उस सुराग को ढूंढना है, तो वह पांचों उस सुराग को ढूंढने निकल जाते हैं।। काफी कोशिश के बाद उन्हें उपवन में एक अटैची मिलती है। मयंक उसे खोलके देखता है। उसमें एक पत्र मिलता है। मयंक उसे पढ़ कर सबको सुनाता है ।
बच्चों मैंने तुम्हारी समझदारी के लिए ये सुराग छुपाया था। मैंने तुम्हें सुराग ढूंढने को कहा था। तुम्हें वह सुराग मिल चुका है। यह वही लड्डू है जो मैंने तुम्हारे लिए बनाया है तुम पांचों इन लड्डुओं को खालो और वे पांचों बहुत खुश हो जाते हैं। वह पांचों लड्डू आपस में खा लेते हैं । यह दृश्य दादी पीछे से देख के बहुत खुश होती हैं और विचार करती हैं कि मेरे बच्चे कितने समझदार हैं।
निशा चौहान, उम्र-12वर्ष
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दादी के बगीचे का खाना
गर्मियों की एक दोपहर रोहन, मीना, चिंटू और अमन दादी के बगीचे में खेलने गए। दादी अक्सर अपने बचपन के खजाने की बातें करती थीं, जिसे उन्होंने बगीचे में कहीं छुपाया था। बच्चों ने ठान लिया कि आज उस खजाने को ढूंढेंगे। वे झाडिय़ों और पुराने आम के पेड़ के पास खोजबीन कर रहे थे, तभी चिंटू अचानक ठोकर खाकर गिर पड़ा। अरे! ये क्या है? उसने चौंकते हुए कहा। वहां जमीन के अंदर लकड़ी का एक डिब्बा दबा हुआ था। सबने मिलकर उसे बाहर निकाला। डिब्बा खोलते ही बच्चों की आंखें चमक उठीं। अंदर सोने जैसे सिक्के और चमचमाते गहने थे।
ये सच में खजाना है! मीना ने उत्साह से कहा। तभी पीछे से दादी की आवाज आई। तो तुमने मेरा बचपन का खजाना ढूंढ लिया! दादी मुस्कु राते हुए बोलीं, जब मैं तुम्हारी उम्र की थी, तो मैं समुद्री डाकू बनने का नाटक करती थी। ये खजाना मैंने तभी छुपाया था। दादी, क्या ये अब हमारा है? रोहन ने पूछा। दादी ने कहा, हां, लेकिन याद रखना असली खजाना सोने में नहीं, बल्कि साथ बिताए पलों और कल्पनाओं में है। बच्चों ने खजाने को साझा किया और हर दिन नए रोमांच की कहानियां गढऩे लगे। दादी का बगीचा अब उनकी कल्पनाओं की दुनिया बन गया।
जीविका मंत्री, उम्र-12वर्ष
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बगीचे के सोने के लड्डू
एक दिन छुट्टी के दौरान वानिया, अनिया, रानी, दिशा और कबीर अपनी दादी के बगीचे में खेलने गए। बगीचा बहुत बड़ा और सुंदर था। वहां फू लों की खुशबू और पक्षियों की चहचहाहट थी। दादी पास के झूले पर बैठी उन्हें देख रही थीं। खेलते-खेलते कबीर ने मिट्टी खोदते हुए चमकती चीज देखी। यह क्या है? कबीर ने चौंकते हुए कहा। अनिया ने जल्दी से मिट्टी हटाई और देखा कि वहां सोने के लड्डू जैसी चीजें थीं। ये तो सोने के लड्डू हैं! दिशा चिल्लाई। लेकिन बगीचे में सोने के लड्डू कहां से आए? वानिया ने हैरानी से पूछा। पांचों बच्चे लड्डू लेकर दादी के पास भागे।
दादी मुस्कुराईं और बोलीं, यह कोई जादू नहीं है। तुम्हारे दादाजी ने यह खजाना सालों पहले यहां छुपाया था। उन्होंने कहा था कि अगर घर के बच्चे इन्हें ढूंढ लेंगे तो, उन्हें उनमें बांटकर, बेसहारा बच्चों की मदद को कहना। बच्चों ने वैसा ही किया। बच्चों ने लड्डुओं को गांव के जरूरतमंद लोगों में बांट दिया। और बदले में उन्हें सभी से आशीर्वाद, दुआएं और मिठाइयां मिलीं। दादी ने बच्चों को गले लगाते हुए कहा, अब तुम सबने सीख लिया कि सच्ची खुशी और सच्ची दुआएं जरूरतमंद लोगों की मदद करने में ही है। उस दिन के बाद बच्चे बगीचे में खेलते हुए हमेशा दादी की कहानी को याद करते और खुद को खुशकिस्मत मानते।
वानिया हिरानी, उम्र-11वर्ष
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दादी का रहस्य
एक बार की बात है, एक गांव में बच्चों का एक समूह स्वादिष्ट लड्डुओं से भरे लकड़ी के बक्से के चारों ओर इकट्ठे हुए । वे हंसे और बातें कीं और प्रत्येक ने एक मीठा लिया, उनकी आंखें खुशी से चमक रही थीं। हालांकि, उनकी खुशी ज्यादा देर तक नहीं रही क्योंकि उन्होंने दूर खड़ी एक रहस्यमयी महिला को देखा। यह एक बुज़ुर्ग महिला थी, जो अपनी आंखों में उदासी और लालसा के साथ उन्हें देख रही थी। बच्चे आपस में फुसफु सा रहे थे, यह जानने की कोशिश कर रहे थे कि वह कौन थी और उन्हें क्यों घूर रही थी। जिज्ञासा के साथ-साथ डर भी था क्योंकि वे उसके पास जाने से हिचकिचा रहे थे। बच्चों ने हिम्मत करके महिला के पास जाने और उसे लड्डू देने का फैसला किया।
उन्हें आश्चर्य हुआ कि जब उसने उन्हें धन्यवाद दिया तो उसकी आंखों में आंसू आ गए, उसने बताया कि वह एक भूली हुई दादी है। जो अपने पोते-पोतियों से जुडऩे के लिए तरस रही थी। बच्चे उसकी कहानी से बहुत प्रभावित हुए और उसे अपने साथ बैठने के लिए आमंत्रित किया, कहानियां साझा कीं और हंसी-मजाक किया और साथ में लड्डू का आनंद लिया। बच्चों के प्यार और स्वीकृ ति की गर्मजोशी को महसूस करते हुए दादी का दिल कृ तज्ञता से भर गया। जैसे-जैसे रात ढलती गई, बच्चों ने दादी को विदा किया और वादा किया कि वे जल्द ही उनसे फिर मिलेंगे। अकेली दादी का रहस्य सुलझ गया था और प्यार-दोस्ती का ऐसा बंधन बन गया था जो जीवन भर कायम रहेगा। और इस तरह इस छोटे से गांव में दया और करुणा की एक मधुर कहानी सामने आई, जिसने उन सभी के दिलों में जादू और आश्चर्य की भावना छोड़ दी, जो इससे प्रभावित हुए।
विहाना चौबिसा, उम्र-8वर्ष
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दादी का मजाक
एक दिन की बात है पांच लड़के बगीचे में खेल रहे थे। जिनका नाम राम, श्याम, अंश, अथर्व और आरव था। वह आराम से बगीचे में खेल रहे थे। तभी उन लोगों की नजर एक डिब्बे पर पड़ी। राम बोला कि उस डिब्बे में क्या हो सकता है। उस समय अंश की दादी आई और बोली क्या हुआ बच्चों तुम खेल क्यों नहीं रहे हो। तभी अंश बोला दादी वह देखो वहां पर एक डिब्बा पड़ा है। दादी बोली, उस डिब्बे में खाने-पीने या अथवा कुछ भी हो सकता है।
बच्चे दादी की बात सुनकर जल्दी डिब्बे के पास गए, पर यह एक मजाक था। दादी वहां खड़ी होकर देखते रही कि वह क्या करेंगे। दादी ने उसे डिब्बे में एक कागज भी रखा था। जब बच्चों ने डिब्बा खोला तो उसमें बहुत सारे लड्डू थे और एक कागज भी था। सारे बच्चे चौंक गए। तभी आरव बोला इतने सारे लड्डू और कागज किसके हो सकते हैं। श्याम बोला कि लड्डू छोड़ो जरा इस कागज को पढ़ो। अथर्व ने कागज लिया और बोला अंश यह तो तेरी दादी ने लिखा है। अब चलो डिब्बा खोलते हैं और लड्डू खाते हैं। सब बच्चों ने मिल बैठकर लड्डू खाए और सभी को अच्छा लगा। अंश की दादी यह सब देखकर बहुत प्रसन्न हुई।
केशव शर्मा, उम्र-13वर्ष
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लड्डू बॉक्स
एक छोटे से शहर में एक दुकान थी, जहां सबसे स्वादिष्ट लड्डू बनते थे। दुकानदार बाबा जी हर रोज ताजे लड्डू बनाते थे। उनके लड्डू इतने मशहूर थे कि दूर-दूर से लोग उन्हें खरीदने आते थे। एक दिन एक छोटा लड़का रोहन दुकान पर आया। उसके पास बहुत कम पैसे थे। उसने बाबा जी से पूछा, बाबा जी, क्या मुझे एक लड्डू मिलेगा? बाबा जी ने मुस्कुराते हुए कहा, बेटा, देखो यह लड्डू बॉक्स है। इसमें कई लड्डू हैं।
तुम इस बॉक्स को ले जाओ और अपने दोस्तों में बांट दो। रोहन बहुत खुश हुआ। उसने बॉक्स लिया और अपने दोस्तों के पास गया। उसने उन्हें लड्डू बांटे और उन सभी ने बहुत मजा किया। जब रोहन घर गया तो उसने अपनी मां को बताया कि उसने क्या किया। उसकी मां ने उसे गले लगाया और कहा, बेटा, तुमने बहुत अच्छा काम किया। खुशियां बांटने से खुशियां बढ़ती हैं। उस रात रोहन बहुत खुश होकर सोया। उसने महसूस किया कि खुशियां बांटने से कितना अच्छा लगता है।
दिव्यराज सिंह, उम्र-11वर्ष
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दादी की कहानी
जंगल की हरियाली में पांच बच्चे अपनी दादी के साथ बैठे थे। दादी ने अपने हाथों से बनाए लड्डू की प्लेट बच्चों के सामने रखी। बच्चों की आंखें लड्डू देखकर चमक उठीं। दादी ने मुस्कुराते हुए कहा, आओ, बच्चों, लड्डू खाओ और जंगल की सुंदरता का आनंद लो। बच्चे लड्डू खाने लगे और जंगल की हरियाली में खो गए।
दादी ने बच्चों को जंगल की रोचक कहानियां सुनानी शुरू कीं। बच्चे दादी की कहानियों में खो गए और लड्डू का स्वाद और भी मीठा हो गया। जंगल की शांति और हरियाली में बच्चे और दादी एक साथ खुशियों के पल बिता रहे थे। जंगल की यह यात्रा बच्चों के लिए एक यादगार अनुभव बन गई।
कनक, उम्र-12वर्ष

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