इसका सबसे बड़ा कारण चुनाव आयोग की ओर से मतदान से पहले मीडिया व सर्वे कम्पनियों की तरफ से मतदान से पहले चुनावी आकलन (ओपिनियन) दिखाने पर बैन लगाना है। इसके चलते चुनावी आंकलन को लेकर फलोदी सट्टा बाजार के नाम पर इन दिनों सैकड़ों खबरें चलाई जा रही है, जिसका यहां के सट्टा बाजार से न कोई लेना-देना है और न ही इस तरह के भाव ही यहां निकाले जाते है।
खास बात है कि सट्टे के ऑनलाइन ऐप आने के बाद से सट्टा बाजार में मंडी लगना भी अब बंद हो गई है। सभी सौदे ऑनलाइन ही होते हैं, जिससे सट्टा बाजार केवल नाम का रह गया है। यहां पहले सब्जी मंडी लगती थी, जिसके कारण भी चहल-पहल रहती थी, लेकिन अब सब्जी मंडी अलग से शिफ्ट होने से यहां सन्नाटा पसर गया है।
सटीक आकलन के लिए पहचान
फलोदी के लोग पीढ़ियों से सटीक आकलन करते आ रहे हैं। जिसके चलते मुंबई में अरंडा बाजार, सर्राफा बाजार, जवेरी बाजार, शेयर बाजार व रूई बाजार में विशेष महारथ रहा है। यहां बारिश के दिनों में आकाश की मनोदशा देखकर लोग बारिश का आकलन भी सटीकता से कर लेते थे। जिस पर पूर्वकाल में सट्टे की परम्परा शुरू हुई थी, लेकिन अब डिजिटल प्लेटफार्म पर ऑनलाइन सट्टा शुरू होने सेफलोदी में सट्टे के भाव नहीं निकलते हैं, बल्कि ऐप में मिलने वाले भावों को ही मान्य माना जाता है और इसी आधार पर विश्वभर में सट्टा होता है।
‘फलोदी का नाम कर रहे बदनाम’ फलोदी नगर परिषद् के पार्षद अशोक व्यास का कहना है कि फलोदी के लोग मुंबई में अरंडा बाजार, सर्राफा बाजार, जवेरी बाजार व शेयर बाजार का आकलन करते थे। शेयर बाजार में अभी भी रिसर्च करते हैं। वर्तमान में चल रहा सट्टा महाराष्ट्र व गुजरात में होता है, जबकि फलोदी का नाम तो नाम बदनाम कर रहे हैं।