राज्यसभा सांसद नीरज डांगी ने बताया कि भारत का संविधान अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को राष्ट्रीय मुख्यधारा में लाने की आवश्यकता पर जोर देता है और संविधान की प्रस्तावना में सभी को सामाजिक-आर्थिक न्याय की गारंटी देता है। मौजूदा परिदृश्य में आर्थिक नीति में परिवर्तन हो रहा है। निजीकरण में वृद्धि, व्यापार उदारीकरण और सार्वजनिक क्षेत्र की अर्थव्यवस्था के विनिवेश के चलते अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण में राज्य पीछे हट रहे है। जबकि निजी क्षेत्र ने जब से सार्वजनिक क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में प्रवेश और संचालन प्राप्त किया है, सामाजिक-आर्थिक न्याय, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए एक मौलिक अधिकार को सुरक्षित करने के दायित्व के बिना अपने आर्थिक कार्यों का विस्तार किया है।