दस माह बाद ही निगम में चुनाव होने हैं और इससे पहले लोकसभा के चुनाव हैं। इसी कारण संगठन चिंता में है। उन्हें चिंता सता रही है कि यदि कथित पार्षदों के बागी होने की स्थिति बनी तो इससे न केवल पार्टी की साख खराब होगी, बल्कि आगामी चुनाव में भी इसका असर पड़ सकता है। इसी कारण पार्टी फूंक—फूंक कर कदम बढ़ा रही है।
एक धड़ा संगठन को दूसरे राज्यों का उदाहरण दे रहा है। इनमें मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, ओडिशा हैं, जहां विधायक और निकाय प्रमुख दोनों पद पर काम करने का दावा किया गया है। यहां तक कि कोर्ट के जरिए यहां भी इसी तरह के नियम बनाने की बात कही जा रही है। हालांकि, सत्तारूढ़ कांग्रेस ऐसा बिल्कुल नहीं चाहेगी।
– पार्टी जो भी निर्देश देगी, उसकी पालना होगी। अभी तक इस्तीफा देने से जुड़े किसी मामले में चर्चा नहीं हुई है।
अशोक लाहोटी, महापौर
– निर्णय संगठन को लेना है। पार्टी भी सभी की राय लेती रही है। महापौर मामले में भी सभी पार्षदों की राय पर काम होगा।
अरुण चतुर्वेदी, पूर्व विधायक
– सभी की एकमत राय से ही महापौर पद पर चयन होगा। पार्टी सबको साथ लेकर चलती है।
सुरेन्द्र पारीक, पूर्व विधायक
– संगठन को तय करना है कि महापौर पद की जिम्मेदारी किसे दें। राजेन्द्र गहलोत को प्रभारी बनाया जा रहा है। उन्हीं को सभी अपना मत बताएंगे।
अशोक परनामी, पूर्व विधायक