विभाग के अफसरों की मानें तो इन सिक्कों पर एक ओर भगवान शिव अंकित है, जो हाथों में त्रिशूल लिए हुए हैं। जबकि कुछ सिक्कों पर नंदी पर सवार भगवान शिव नजर आ रहे हैं। सिक्कों के दूसरे भाग में शासक खड़ा हुआ है, जो यज्ञ में आहुति दे रहा है। जबकि कुछ सिक्कों में शासक त्रिशूल लिए नजर आ रहा है। इन सिक्कों पर खरोष्ठी लिपि अंकित है। इनमें अधिकतर सिक्के कुषाण काल के हैं।
टोंक और झुंझुनूं से मिले सिक्के
शिव व नंदी के अधिकतर सिक्के विभाग को टोंक व झुंझुनूं जिले में मिले हैं। कुछ सिक्के प्रदेश के विभिन्न स्थानों से प्राप्त हुए हैं। अब ये सिक्के विभाग की मुद्रा शाखा के पास संरक्षित हैं।
इन्होंने अंकित करवाए सिक्कों पर शिव-नंदी
जानकारों की मानें तो ईसा की पहली शताब्दी में भारत पर कुषाण वंश का शासन था। कुषाण शासकों में कनिष्क को शक संवत का प्रणेता माना जाता है। इन्होंने शैव धर्म स्वीकार किया और अपने राज्य में प्रचलित सोने के सिक्कों पर सबसे पहले शिव और नंदी का अंकन करवाया।
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95 हजार सिक्के हैं मुद्रा शाखा में
अफसरों की मानें तो पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग के 22 म्यूजियम में करीब सवा दो लाख ऐतिहासिक सिक्के हैं, इनमें सबसे अधिक 95 हजार सिक्के जयपुर स्थित मुद्रा शाखा के पास हैं।
मुद्रा शाखा के पास शिव व नंदी के 150 से अधिक सोने के सिक्के हैं। ये सिक्के ईसा की पहली शताब्दी के हैं। अधिकतर सिक्के टोंक व झुंझुनूं जिले में प्राप्त हुए हैं। विभाग ने इन्हें संरक्षित रखा हुआ है।