जाकिर हुसैन जब भी निजी यात्रा पर जयपुर आते थे तो आमेर में कलाकार हामिद कावा के यहां जरूर ठहरते थे। अपने परिवार की एक शादी में उन्होंने कावा के क्लासिकल बैंड का प्रोग्राम रखवाया था। उन्हें आमेर की गुंजिया काफी पसंद थीं। जाकिर हुसैन तबले के फरिश्ते भी इसलिए कहलाते थे कि तबले की गणित का ऐसा ज्ञान रखने के बावजूद वह विनम्रता की मूरत थे।
एक बार संगीत चर्चा के दौरान मैंने पूछा कि जयपुर के तबला वादकों में आपको क्या कोई अच्छा लगता है तो उनका जवाब था कि जयपुर तो संगीत का घराना है। यहां एक से एक गुणी कलाकार हुए हैं, अगर तबले की बात करें तो यहां उस्ताद हिदायत खां का जवाब नहीं था। जाकिर हुसैन दुनिया भर में न केवल तबले के पर्याय बन गए थे बल्कि उन्हें तबले की दुनिया का फरिश्ता भी कहा जाए तो गलत नहीं होगा।
कला के साथ-साथ उनकी विनम्रता ने भी कला प्रेमियों को अपना मुरीद बना लिया था। उस्ताद जाकिर हुसैन के पिता तबला नवाज उस्ताद अल्लाह रक्खा खान ने एकल तबला वादन के साथ-साथ ए.आर. कुरैशी के नाम से सिने जगत में बतौर यूजिक डायरेक्टर बहुत नाम कमाया था। उनके भाई भी अपने खानदान की परंपरा को ना केवल आगे बढ़ा रहे हैं बल्कि अल्लाह रक्खा खान के घराने का नाम रोशन कर रहे हैं। जाकिर हुसैन सब के दिलों में जिंदा रहेंगे, तबले के फरिश्ते को आखिरी सलाम।
-इकबाल खां,
वरिष्ठ कला समीक्षक