ज्योतिषाचार्य पंडित सोमेश परसाई के अनुसार मान्यता है कि गोलोक के रासमण्डल में कार्तिक पूर्णिमा को स्वयं श्रीकृष्ण ने श्रीराधा की पूजा की थी। गोलोक को सभी ब्रह्मांडों में सर्वोच्च बताया गया है। कार्तिक पूर्णिमा को देवी तुलसी का प्रकाट्य दिवस भी माना जाता है। इसी दिन बैकुण्ठ धाम में देवी तुलसी अवतरित हुई थीं।
कार्तिक पूर्णिमा को बैकुण्ठ के स्वामी विष्णुजी को तुलसी पत्र अर्पित करते हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित एमकुमार शर्मा के अनुसार इस दिन राधा—कृष्ण पूजन जरूर करना चाहिए। तुलसी वृक्ष के नीचे श्री राधा—कृष्ण का पूजन करने पर सर्वसुख मिलते हैं। आवंले के वृक्ष के नीचे बैठकर भी यह पूजा कर सकते है। कार्तिक पूर्णिमा को राधाजी के दर्शन का भी महत्व है।
अगर इस दिन कृतिका नक्षत्र में चन्द्रमा और बृहस्पति हो तो यह महापूर्णिमा कहलाती है। कृतिका में चन्द्रमा और विशाखा में सूर्य हो तो उत्तम फल देनेवाला पद्मक योग बनता है। कार्तिक पूर्णिमा को महाकार्तिकी भी कहते हैं। यदि इस पूर्णिमा के दिन भरणी नक्षत्र या रोहिणी नक्षत्र हो तो इसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन अन्न, धन या वस्त्र दान का बहुत महत्व है। मान्यता है कि इस दिन जो कुछ भी दान किया जाता है स्वर्ग लोक के लिए संरक्षित हो जाता है। दान करनेवालों को मृत्यु के बाद स्वर्ग लोक में वह सामग्री पुनः प्राप्त हो जाती है। कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान का सबसे ज्यादा महत्व है। इस दिन किसी भी व्यक्ति को बिना स्नान किए नहीं रहना चाहिए।