इस घटना की शुरुआत अगस्त 1976 में हुई जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी को एक पत्र लिखकर कहा कि जयगढ़ के किले में जो खजाने की खोज चल रही है, उस पर पाकिस्तान का भी अधिकार है। इस पत्र से स्पष्ट होता है कि खजाने की खबर कितनी व्यापक थी कि पाकिस्तान ने भी दावा ठोक दिया।
यह खजाना कथित रूप से मुगल काल के समय का था, जब अकबर ने अपने सेनापति राजा मान सिंह को अफगानिस्तान फतह करने के लिए भेजा था। मान सिंह ने जीत हासिल की और बड़ी मात्रा में खजाना लेकर जयपुर लौटे, लेकिन उन्होंने इसकी जानकारी अकबर को नहीं दी और खजाने को जयगढ़ किले के पानी के टैंकों में छिपा दिया। यह कहानी आरएस खानगरोट और पीएस नाथावत की 1990 में प्रकाशित किताब ‘जयगढ़, द इनविसाइबल फोर्ट ऑफ आंबेर’ में विस्तार से बताई गई है।
आपातकाल के दौरान, इंदिरा गांधी के पास मीडिया पर नियंत्रण था और विपक्षी नेताओं की गैरमौजूदगी के कारण वह इस खजाने की खोज कर सकती थीं। इसी दौरान, कांग्रेस विरोधी राजमाता गायत्री देवी को भी गिरफ्तार करवा लिया गया और सेना के साथ आयकर विभाग और अन्य सरकारी टीमों ने किले में खुदाई शुरू की। खुदाई पांच महीने तक चली, और इस दौरान किले के ऊपर अक्सर हेलिकॉप्टर देखे जाते थे, जिससे अफवाहें और बढ़ गईं कि किले में जरूर कुछ महत्वपूर्ण है।
खुदाई के दौरान, इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी किले का दौरा करने गए थे। जब खुदाई पूरी हो गई, तो इंदिरा गांधी ने कहा कि जयगढ़ में 230 किलो चांदी के अलावा कोई खजाना नहीं मिला। हालांकि, इसके बाद से यह खजाना एक रहस्य ही बना रहा है। कुछ रिपोर्टों में यह दावा किया गया कि खुदाई के दौरान जयपुर-दिल्ली हाईवे को कई दिनों तक बंद कर दिया गया था और 50 से 60 ट्रक दिल्ली की ओर रवाना हुए थे। लेकिन यह कभी स्पष्ट नहीं हुआ कि इन ट्रकों में क्या था।
जयगढ़ का यह कथित खजाना आज भी अनसुलझा रहस्य है। इसे खोजने के लिए आरटीआई डाले गए, लेकिन कोई जानकारी हासिल नहीं हुई। यह रहस्य कई लोगों के लिए आज भी उत्सुकता का कारण बना हुआ है।