पहली नहर
जीरोता, श्रीकिशनपुरा के पास के इलाके से बारिश के पानी के लिए प्राकृतिक नहर बनी हुई है। इसके बीच कई जगह बाउंड्रीवाल बना दी गई। तालाब से जोडऩे के लिए सडक़ के नीचे पाइप डाले गए, ज्यादा असर नहीं हुआ।
जगतपुरा, रामनगरिया की तरफ से नहर आ रही है। यही प्रमुख स्रोत है तालाब में पानी आने का। यहां ज्यादातर हिस्सा खुला है लेकिन अंतिम छोर पर सडक़ से बहाव क्षेत्र प्रभावित हुआ है।
सिरोली, दांतली इलाके से पानी की आवक रहती है, पर यहां प्राकृतिक बहाव क्षेत्र को बंद कर दिया। पंचायत समिति ने मुख्य सडक़ हिस्से में खुदाई कर बहाव क्षेत्र बनाने की कोशिश की, लेकिन फिर बीच में कई जगह बंद कर दिया गया।
तालाब में पानी नहीं होने से यहां का भूजल स्तर दो वर्ष में 1 मीटर तक गिर गया है। एक जगह पर तो योजना सृजित करने के लिए प्राकृतिक बहाव क्षेत्र को प्रभावित कर धड़ल्ले से पाइप डालने का काम चल रहा है।
गोनेर इलाके में सडक़ निर्माण कार्य चल रहा है, इसके लिए तालाब क्षेत्र में ही खुदाई कर वहां कंक्रीट व अन्य निर्माण सामग्री डाल दी गई। यहां तक कि कई जगह कैचमेंट हिस्से को भी नुकसान पहुंचा दिया गया।
खीर-मालपुआ बनाने में इसी पानी का उपयोग किया जाता था। साथ ही जलझूलनी एकादशी पर भगवान जगदीश सागर में नौका विहार करते रहे। पानी न आने की वजह से अब यह मात्र परंपरा बनकर रह गई है। तालाब के एक छोर पर बने मंदिर परिसर में कुएं का जलस्तर दिनों दिन कम होता जा रहा है। हालांकि, कुएं के पानी से भगवान को नहलाने से लेकर चरणामृत बनाने का काम आज भी होता है।
हालात
मानसून में इन नहरों के जरिए खूब पानी आता था, लेकिन जगतपुरा से गोनेर के बीच कॉलोनियां विकसित होने व सडक़ों का निर्माण होने से पानी की आवक कम हो गई। 10 सालों से सागर पूरी तरह से नहीं भर पाया है। थोड़ा सा पानी ही आकर रह जाता है।
कुछ साल पहले टयूबवैल से तालाब को भरने की योजना बनाई थी, लेकिन इसको अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका। इस योजना के तहत प्रतिदिन तीन ट्यूबवेल से 4.5 लाख लीटर प्रतिदिन आने का दावा किया गया।
सडक़ चौड़ी करने के नाम पर जेडीए ने तालाब की पाल को तोड़ इसके पुराने स्वरूप को बिगाड़ दिया था। यही नहीं, तालाब के पास बागड़ा धर्मशाला के पास कुएं को पाट सडक़ चौड़ी कर दी। महादेवजी की बावड़ी को पाट सडक़ की भी योजना थी।
अरुण जैन, उप सरपंच, गोनेर